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प्रासाद प्रकरणम्
( १११ )
चार कोना और चार भद्र ये समस्त प्रासादों में नियम से होते हैं। कोने के
दोनों तरफ प्रतिभद्र होते हैं ॥ १३ ॥
प्रतिकर्ण
उपरथ
कर्ण-रेखा
ओसार
कर्या-रेखा
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समदल
प्रासाद तल
प्रतिफण
देखा-कर्ण
ओसार
रेखा-कणे
यह प्रासाद का नक्शा प्रासाद मंडन और अपराजित यदि ग्रंथों के आधार से सम्पूर्ण अवयवों के
के साथ दिया गया है, उसमें से
इच्छानुसार बना सकते हैं ।
प्रतिरथ, वोलिंजर और नंदि इनका मान क्रम से तीन, पांच और साढ़े तीन भाग समझना ।
भद्र की दोनों तरफ पल्लविका और कर्णिका अवश्य करके होते हैं ॥ १४ ॥
दो भाय 'हव कृणो कमेण पाऊण जा भवे गंदी | पायं एग दुसड्ढं पल्लवियं करणिकं भदं ॥ १५ ॥
दो भाग का कोना, पीछे क्रम से पाव २ भाग न्यून नंदी तक करना । पाव भाग, एक भाग और भढ़ाई भाग ये क्रम से पल्लव, कर्णिका और भद्र का मान समझना ।। १५ ॥
भद्दद्धं दसभायं तस्साओ मूलनासियं एगं ।
पणाति त य सवाति य कमेण एयंपि पडिरहाईसु ॥ १६ ॥
भद्रार्द्ध का दश भाग करना, उनमें से एक भाग प्रमाण की शुकनासिका करना । पौने तीन, तीन और सवा तीन ये क्रम से प्रतिरथ आदि का मान समझना ॥ १६ ॥
१ 'कुणओ हुइ' इति पाठान्तरे २ 'ऽहलेहं सुकमेण नाथवं ।
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