SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ । ११०) वास्तुसारे २१ नमिवल्लभ प्रासाद-उल भाग १६ । कोण ३, प्रतिकर्ण २, भद्रार्द्ध भाग ३=८+८=१६। २२ नेमिवल्लभ प्रासाद-तल भाग २२ । कोण २, कोणी १, प्रतिकर्ण २, कोणी १, उपरथ २, नंदिका १, भद्रार्द्ध २=११ + ११=२२ ।। २३ पाचवल्लभ प्रासाद-तल भाग २८ । कोण ४, कोणी २, प्रतिकर्ण ३, नंदिका १, भद्रार्द्ध ४=१४+१४ = २८ । २४ वीरविक्रम ( वीरजिनवल्लभ ) प्रासाद-तल भाग २४ । कोण ३, कोणी १, प्रतिकर्ण ३, नंदी १, भद्रार्द्ध ४% १२+१२ = २४ । प्रासाद संख्या एएहि उवज्जंती पासाया विविहसिहरमाणाओ। नव सहस्स छ सय सत्तर वित्थारगंथाउ ते नेया ॥ ११ ॥ अनेक प्रकार के शिखरों के मान से नव हजार छ: सौ सत्तर (६६७० ) प्रासाद उत्पन्न होते हैं । उनका सविस्तर वर्णन अन्य ग्रन्यों से जानना ॥ ११॥ प्रासादतल की भाग संख्या चउरंसंमि उ खित्ते अट्ठाइ दु वुड्ढि जाव बावीसा । भायविराडं एवं सव्वेसु वि देवभवणेसु ॥ १२॥ समस्त देवमन्दिर में समचौरस मूलगम्भारे के तलभाग का आठ, दश, बारह, चौदह, सोलह, अठारह, बीस या बाईस भाग करना चाहिये ॥ १२॥ प्रासाद का स्वरूप --- चउकूणा चउभदा सब्बे पासाय हुंति नियमेण । कूणस्सुभयदिसेहिं दलाई पडिहोंति भद्दाइं ॥ १३ ॥ पडिरह वोलिंजरया नंदीसुकमेण ति पण सत्त दला। पल्लवियं करणिक अवस्स भद्दस्स दुण्हदिसे ॥ १४ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy