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प्रासाद प्रकरणम्
( १०७) विश्वकर्मा ने अनेक प्रकार के प्रासाद के असंख्य भेद बतलाये हैं, किन्तु इनमें अति उत्तम केशरी आदि पच्चीस प्रकार के प्रासादों को मैं ( फेरु) कहता हूँ ॥६॥ 'पच्चीस प्रकार के प्रासादों के नाम---
केसरि अ सव्वभदो सुनंदणो नंदिसालु नंदीसो । तह मंदिरु सिरिवच्छो अमिअब्भवु हेमवंतो अ॥७॥ हिमकूडु कईलासो पुहविजओ इंदनीलु महनीलो। भूधरु अ रयणकूडो वइडुज्जो पउमरागो अ॥ ८॥ वज्जंगो मुउडुज्जलु अइरावउ रायहंसु गरुडो अ। वसहो अ तह य मेरु एए पणवीस पासाया ॥ ९॥
केशरी, सर्वतोभद्र, सुनंदन, नंदिशाल, नंदीश, मन्दिर, श्रीवत्स, अमृतोद्भव, हेमवंत, हिमकूट, कैलाश, पृथ्वीजय, इंद्रनील, महानील, भूधर, रत्नकूड, वैडूर्य, पद्मराग, वनांक, मुकुटोज्वल, ऐरावत, राजहंस, गरुड, वृषभ और मेरु ये पच्चीस प्रासाद के क्रम रा नाम है ॥ ७-८-६ ॥ पच्चीस प्रासादों के शिखरों की संख्या
पण अंडयाइ-सिहरे कमेण चउ वुड्ढि जा हवइ मेरु । मेरुपासायअंडय-संखा इगहियसयं जाण ॥ १०॥
पहला केशरी प्रासाद के शिखर ऊपर पांच अंडक (शिखर के आसपास जो छोटे छोटे शिखर के आकार के रखे जाते हैं उनको अंडक कहते हैं, ऐसे प्रथम केशरी प्रासाद में एक शिखर और चार कोणे पर चार अंडक हैं। ) पीछे क्रमशः चार २ अंडक मेरुप्रासाद तक बढ़ाते जावें तो पच्चीसवाँ मेरु प्रासाद के शिखर पर कुल एक सौ एक अंडक होते हैं ॥ १० ॥
इन पच्चीस प्रासादों का सचित्र सविस्तरवर्णन मेरा अनुवादित 'प्रासादमण्डन' ग्रन्थ जो अब छपनेबाला है उसमें देखो।
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