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(१०८)
वास्तुसारे - जैसे केशरी प्रासाद में शिखर समेत पांच अंडक, सर्वतोभद्र में नव, सुनंदन प्रासाद में तेरह, नंदिशाल में सत्रह, नंदीश में इक्कीस, मन्दिरप्रासाद में पच्चीस, श्रीवत्स में उनत्तीस, अमृतोद्भव में तैंतीस, हेमंत में सैंतीस, हेमकूट में इकतालीस, कैलाश में पैंतालीस, पृथ्वीजय में उन-पचास, इन्द्रनील में त्रेपन, महानील में सत्तावन, भूधर में इकसठ, रत्नकूड में पैंसठ, वैडूर्य में उनसत्तर (६६), पद्मराग में तिहत्तर, वज्रांक में सतहत्तर, मुकुटोज्वल में इक्यासी, ऐरावत में पचासी, राजहंस में नेयासी,गरुड में तिराणवे, वृषभ में सत्तानवे और मेरुप्रासाद के ऊपर एकसौ एक शिखर होते हैं। दीपार्णवादि शिल्प ग्रंथों में चतुर्विंशति जिन आदि के प्रासाद का स्वरूप तल आदि के
भेदों से जो बतलाया है, उसका सारांश इस प्रकार है
१ कमलभूषणप्रासाद (ऋषभजिनप्रासाद)-तल भाग ३२ । कोण भाग ३, कोणी भाग १, प्रतिकर्ण भाग ३, कोणी भाग १, उपरथ भाग ३, नंदी भाग १, भद्रार्द्ध भाग ४=१६+१६=३२ ।
२ कामदायक (अजितवल्लम) प्रासाद-तलमाग १२ । कोण २, प्रतिकर्ण २, भद्रार्द्ध २-६+६=१२।
३ शम्भववल्लभप्रासाद-तल भाग है। कोण १६, कोणी प्रतिकर्ण १, नंदी , भद्रार्द्ध १६-४६+४-६ ।
४ अमृतोद्भव (अभिनंदन) प्रासाद-तल भाग ६ । कोण आदि का विभाग ऊपर मुजब ।
५ क्षितिभूषण (सुमतिवल्लभ) प्रासाद-तल भाग १६ । कोण २, प्रतिकर्ण २, उपरथ २, भद्रार्द्ध २८+८=१६ ।
६ पद्मराग (पद्मप्रभ) प्रासाद-तल भाग १६ । कोण आदि का विभाग ऊपर मुजब ।
७ सुपार्श्ववल्लभप्रासाद-तल भाग १० । कोण २, प्रतिकर्ण १६, भद्रार्द्ध १६-५+५=१०।
___८ चंद्रप्रभप्रासाद-तल भाग ३२ । कोण ५, कोणी १, प्रतिकर्ण ५, नंदी १, भद्रार्द्ध ४=१६+ १६-३२।
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