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________________ विम्वपरीक्षा प्रकरणम् प्रतिमा यदि ऊर्ध्व मुखवाली हो तो धन का नाश करनेवाली है। तिरछी दृष्टिवाली हो तो अपूजनीय रहे । अति गाढ दृष्टिवाली हो तो अशुभ करने वाली है और अधोदृष्टि हो तो विघ्नकारक जानना ॥ ५१ ॥ चउभवसुराण आयुह हवंति केसंत उप्परे जइ ता। करणकरावणथप्पणहाराण प्पाणदेसहया ॥ ५२ ॥ चार निकाय के ( भुवनपति, व्यंतर, ज्योतिषी और वैमानिक ये चार योनि में उत्पन्न होने वाले ) देवों की मूर्ति के शस्त्र यदि केश के ऊपर तक चले गये हों तो ऐसी मूर्ति करने वाले, कराने वाले और स्थापन करने वाले के प्राण का और देश का विनाशकारक होती है ॥ ५२॥ ___ यह सामान्यरूप से देवों के शस्त्रों के विषय में कहा है, किन्तु यह नियम सब देवों के लिये हो ऐसा मालूम नहीं पड़ता, कारण कि भैरव, भवानी, दुर्गा, काली श्रादि देवों के शस्त्र माथे के ऊपर तक चले गये हैं, ऐसा प्राचीन मूर्तियों में देखने में आता है, इसीसे मालूम होता है कि ऊपर का नियम शांत वदनवाले देवों के विषय में होगा। रौद्र प्रकृतिवाले देवों के हाथों में लोहू का खप्पर या मस्तक प्राय: करके रहते हैं, ये असुरों का संहार करते हुए देख पड़ते हैं, इसलिये शस्त्र उठायें रहने से माथे के ऊपर जा सकते हैं तो यह दोष नहीं माना होगा, परन्तु ये देव भी शान्तिचित्त होकर बैठे हों ऐसी स्थिति की मूर्ति बनवाई जाय तो इनके शस्त्र उठायें न रहने से माथे ऊपर नहीं जा सकते, इसलिये उपरोक्त दोष बतलाया मालूम होता है । चउवीसजिण नवग्गह जोइणि-चउसट्टि वीर-बावन्ना । चवीसजक्खजक्खिणि दह-दिहवइ सोलस-विज्जुसुरी ॥५३॥ नवनाह सिद्ध-चुलसी हरिहर बंभिंद दाणवाईणं । वणंकनामश्रायुह वित्थरगथाउ जाणिजा ॥ ५४ ॥ इति परमजैनश्रीचन्द्राङ्गज ठक्कुर ‘फेरु' विरचिते वास्तुसारे बिम्बपरीक्षाप्रकरणं द्वितीयम् । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
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