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वास्तुसारे
कडिहीणायरियहया सुयबंधवं हणइ हीणजंघा य । हीणासण रिद्धिहया धणक्खया हीणकरचरणा ॥४७॥
प्रतिमा यदि कटि हीन हो तो प्राचार्य का नाशकारक है। हीन जंघावाली हो तो पुत्र और मित्र का क्षय करे । हीन आसनवाली हो तो रिद्धि का विनाशकारक है। हाथ और चरण से हीन हो तो धन का क्षय करनेवाली जानना ॥ ४७॥
उत्ताणा अत्थहरा वंकग्गीवा सदेसभंगकरा। अहोमुहा य सचिंता विदेसगा हवइ नीचुच्चा ॥४८॥
प्रतिमा यदि ऊर्ध्व मुखवाली हो तो धन का नाशकारक है, टेढी गरदनवाली हो तो स्वदेश का विनाश करनेवाली है। अधोमुखवाली हो तो चिन्ता उत्पन्न करनेवाली और ऊंच नीच मुखवाली हो तो विदेशगमन करानेवाली जानना ॥४८॥
विसमासण-वाहिकरा रोरकरराणायदव्वनिप्पन्ना। हीणाहियंगपडिमा सपक्खपरपक्खकट्टकरा ॥ ४१ ॥
प्रतिमा यदि विषम आसनवाली हो तो व्याधि करनेवाली है। अन्याय से पैदा किये हुए धन से बनवाई गई हो तो वह प्रतिमा दुष्काल करनेवाली जानना । न्यूनाधिक अंगवाली हो तो स्त्रपक्ष को और परपक्ष को कष्ट देनेवाली है ॥ ४६॥
पडिमा रउद्द जा सा करावयं हंति सिप्पि अहियंगा। दुब्बलदव्वविणासा किसोअरा कुणइ दुभिक्खं ॥ ५० ॥
प्रतिमा यदि रौद्र ( भयानक ) हो तो करानेवाले का और अधिक अंग वाली हो तो शिल्पी का विनाश करे । दुर्बल अंगवाली हो तो द्रव्य का विनाश करे और पतली कमरवाली हो तो दुर्भिक्ष करे ।। ५० ॥
उड्ढमुही धणनासा अप्पूया तिरिअदिहि विन्नेया। अइघट्टदिष्टि असुहा हवइ अहोदिडि विग्धकरा ॥५१॥
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