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बिम्बपरीक्षा प्रकरणम्
नेमनाथ स्वामी, महावीर स्वामी और मल्लीनाथ स्वामी ये तीनों तीर्थकर वैराग्यकारक हैं, इसलिये इन तीनों को प्रासाद (मंदिर) में स्थापित करना शुभकारक हैं, किन्तु घरमंदिर में स्थापित करना शुभकारक नहीं हैं।
इक्कंगुलाइ पडिमा इक्कारस जाव गेहि पूइज्जा। उड्ढे पासाइ पुणो इअ भणियं पुव्वसूरीहिं ॥ ४३॥
घरमंदिर में एक अंगुल से ग्यारह अंगुल तक की प्रतिमा पूजना चाहिये, इससे अर्थात् ग्यारह अंगुल से अधिक बड़ी प्रतिमा प्रासाद में ( मंदिर में ) पूजना चाहिये ऐसा पूर्वाचार्यों ने कहा है ॥ ४३ ॥
नह-अंगुलीअ-बाहा-नासा-पय-भंगिणु कमेण फलं । सत्तुभयं देसभंगं बंधण-कुलनास-दव्वक्खयं ॥४४॥
प्रतिमा के नख, अंगुली, बाहु, नासिका और चरण इनमें से कोई अंग खंडित हो जाय तो शत्रु का भय, देश का विनाश, बंधनकारक, कुल का नाश और द्रव्य का क्षय, ये क्रमशः फल होते हैं ॥४४॥ . पयपीढचिराहपरिगर-भंगे जनजाणभिच्चहाणिकमे ।
छत्तसिरिवच्छसवणे लच्छी-सुह-बंधवाण खयं ॥ ४५ ॥ पादपीठ चिन्ह और परिकर इनमें से किसी का भंग हो जाय तो क्रमशः स्वजन, वाहन और सेवक की हानि हो । छत्र, श्रीवत्स और कान इनमें से किसी का खंडन हो जाय तो लक्ष्मी, सुख और बंधन का क्षय हो ॥ ४५ ॥
बहुदुक्ख वकनासा हस्संगा खयंकरी य नायव्वा । नयणनासा कुनयणा अप्पमुहा भोगहाणिकरा ॥ ४६॥
यदि प्रतिमा वक्र (टेढी ) नाकवाली हो तो बहुत दुःखकारक है। इस्व (छोटे) अवयववाली हो तो क्षय करनेवाली जानना। खराब नेत्रवाली हो तो नेत्र का विनाशकारक जानना और छोटे मुखवाली हो तो भोग की हानिकारक जानना ॥१६॥
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