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वास्तुसोरे
फिर बनवा सकते हैं । परन्तु लकड़ी या पत्थर की प्रतिमा खंडित हो जाय तो फिर संस्कार के योग्य नहीं है । एवं प्रतिष्ठा होने बाद कोई भी प्रतिमा का कभी संस्कार नहीं होता है, यदि कारणवश कुछ संस्कार करना पड़ा तो फिर पूर्ववत् ही प्रतिष्ठा करानी चाहिये । कहा है कि-प्रतिष्ठा होने बाद जिस मूर्ति का संस्कार करना पड़े, तोलना पड़े, दुष्ट मनुष्य का स्पर्श हो जाय, परीक्षा करनी पड़े या चोर चोरी कर ले जाय तो फिर उसी मूर्ति की पूर्ववत् ही प्रतिष्ठा करानी चाहिये । घरमंदिर में पूजने लायक मूर्ति का स्वरूप
पाहाणलेवकट्ठा दंतमया चित्तलिहिय जा पडिमा। अप्परिगरमाणाहिय न सुंदरा पूयमाणगिहे ॥ ४२ ॥
पाषाण, लेप, काष्ठ, दांत और चित्राम की जो प्रतिमा है, वह यदि परिकर से रहित हो और ग्यारह भंगुल के मान से अधिक हो तो पूजन करनेवाले के घर में अच्छा नहीं ॥ ४२ ॥
परिकरवाली प्रतिमा अरिहंत की और बिना परिकर की प्रतिमा सिद्ध की है। सिद्ध की प्रतिमा घरमंदिर में धातु के सिवाय पत्थर, लेप, लकड़ी, दांत या चित्राम की बनी हुई हो तो नहीं रखना चाहिये । अरिहंत की मूर्ति के लिये भी श्रीसकलचन्द्रोपाध्यायकृत प्रतिष्ठाकल्प में कहा है कि
"मल्ली नेमी वीरो गिहमवणे सावए ण पूइज्जइ ।
इगवीसं तित्थयरा संतिगरा पूइया वंदे ॥" मल्लीनाथ, नेमनाथ और महावीर स्वामी ये तीन तीर्थंकरों की प्रतिमा श्रावक को घरमंदिर में न पूजना चाहिये । किन्तु इक्कीस तीर्थंकरों की प्रतिमा घरमंदिर में शांतिकारक पूजनीय और वंदनीय हैं। कहा है कि
"नेमिनाथो वीरमल्ली-नायौ वैराग्यकारकाः। त्रयो वै भवने स्थाप्या न गृहे शुभदायकाः ॥"
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