SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 119
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बिम्बपरीक्षा प्रकरणम् जो प्रतिमा एक सौ वर्ष के पहले उत्तम पुरुषों ने स्थापित की हुई हो, वह यदि विकलांग ( बेडोल ) हो या खंडित हो तो भी उस प्रतिमा को पूजना चाहिये । पूजन का फल निष्फल नहीं जाता ॥ ३९ ॥ मुह-नक-नयण-नाही-कडिभंगे मूलनायगं चयह । आहरण-वत्थ-परिगर-चिराहायुहभगि पूइज्जा ॥ ४०॥ मुख, नाक, नयन, नाभि और कमर इन अंगों में से कोई अंग खंडित हो जाय तो मूलनायक रूप में स्थापित की हुई प्रतिमा का त्याग करना चाहिये । किन्तु आभरण, वस्त्र, परिकर, चिन्ह, और आयुध इनमें से किसी का भंग हो जाय तो पूजन कर सकते हैं ॥४०॥ धाउलेवाइबिंब विअलंगं पुण वि कीरए सज्जं । कहरयणसेलमयं न पुणो सज्जं च कईयावि ॥४१॥ धातु ( सोना, चांदी, पित्तल आदि ) और लेप ( चूना, ईंट, माटी आदि) की प्रतिमा यदि अंग हीन हो जाय तो उसी को दूसरी बार बना सकते हैं । किन्तु काष्ठ, रत्न और पत्थर की प्रतिमा यदि खंडित हो जाय तो उसी ही को कभी भी दूसरी बार नहीं बनानी चाहिये ॥४१॥ आचारदिनकर में कहा है कि "धातुलेप्यमयं सर्व व्यङ्ग संस्कारमईति । काष्ठपाषाणनिष्पन्नं संस्कारार्ह पुनर्नहि ॥ प्रतिष्ठिते पुनर्बिम्बे संस्कार: स्यान्न कहिचित् । संस्कारे च कृते कार्या प्रतिष्ठा तादृशी पुनः ।। संस्कृते तुलिते चैव दुष्टस्पृष्टे परीक्षिते । हृते बिम्बे च लिङ्गे च प्रतिष्ठा पुनरेव हि ।।" धातु की प्रतिमा और ईंट, चूना, मट्टी आदि की लेपमय प्रतिमा यदि विकलांग हो जाय अर्थात खंडित हो जाय तो वह फिर संस्कार के योग्य है । अर्थात उस ही को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002673
Book TitleVastusara Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhagwandas Jain
PublisherGyansagar Vagarth Vimarsh Kendra Byavar
Publication Year1936
Total Pages264
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy