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वास्तुसारे
चरण के मध्य भाग की रेखा पंद्रह भाग अर्थात् एड़ी से मध्य अंगुली तक पंद्रह अंगुल लंबा, अंगूठे तक सोलह अंगुल और कनिष्ठ (छोटी) अंगुली तक चौदह अंगुल इस प्रकार चरण बनाना चाहिये ।। १६ ।।
करयलगम्भाउ कमे दीहंगुलि नंदे अट्ठ पक्खिमिया। छच्च कणिष्ट्रिय भणिया गीवुदए तिनि नायव्वा ॥२०॥
करतल ( हथेली ) के मध्य भाग से मध्य की लंबी अंगुली तक नव अंगुल, मध्य अंगुली के दोनों तरफ की तर्जनी और अनामिका अंगुली तक आठ २ अंगुल और कनिष्ठ अंगुली तक छः अंगुल, यह हथेली का प्रमाण जानना । गले का उदय तीन भाग जानना ॥ २० ॥
मज्झि महत्यंगुलिया पणदीहे पक्खिमी श्र चउ चउरो। लहु-अंगुलि-भायतियं नह-इकिकं ति-अंगुटुं ॥ २१ ॥
मध्य की बड़ी अंगुली पांच भाग लंबी, बगल की दोनों (तर्जनी और अनामिका ) अंगुली चार २ भाग लंबी, छोटी अंगुली तीन भाग लंबी और अंगूठा तीन भाग लंपा करना चाहिये । सब अंगुलियों के नख एक एक भाग करना चाहिये ॥ २१॥
अंगुट्ठसहियकरयलवट्ट सत्तंगुलस्स वित्थारो। चरणं सोलसदीहे तयद्धि वित्थिन्न चउरुदए ।॥ २२ ॥
अंगूठे के साथ करतलपट का विस्तार सात अंगुल करना । चरण सोलह भंगुल लंबा, पाठ अंगुल चौड़ा और चार अंगुल ऊंचा ( एड़ी से पैर की गांठ तक) करना ॥ २२ ॥
गीव तह कन अंतरि खणे य वित्थारि दिवड्डु उदइ तिगं । अंचलिय अह वित्थरि गद्दिय मुह जाव दीहेण ॥ २३ ॥
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