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बिम्बपरीक्षा प्रकरणम्
(११)
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स्तनस्त्र से नीचे के भाग में भुना का प्रमाण बारह भाग और स्तनसूत्र से ऊपर स्कंध छ: भाग समझना । नाभि स्कंध और केशांत माग गोल बनाना चाहिये ॥ १५ ॥
कर-उयर-अंतरेगं चउ-वित्थरि नंददीहि उच्छंगं । जलवहु दुदय तिवित्थरि कुहुणी कुच्छितरे तिनि ॥ १६ ॥
हाथ और पेट का अंतर एक अंगुल, चार अंगुल के विस्तारवाला और नव अंगुल लंबा ऐसा उत्संग ( गोद ) बनाना। पलाठी से जल निकलने के मार्ग का उदर दो अंगुल और विस्तार तीन अंगुल करना चाहिये । कुहनी और कुक्षी का अंतर तीन अंगुल रखना चाहिये ॥ १६ ॥
बंभसुत्ताउ पिंडिय छ-गीव दह-कन्नु दु-सिहण दु-भालं । दुचिबुक सत्त भुजोवरि भुयसंधी अपयसारा ॥ १७ ॥
ब्रह्मसूत्र ( मध्यगर्भसूत्र ) से पिंडी तक अवयवों के अर्द्ध भाग-छ: भाग गला, दश भाग कान, दो भाग शिखा, दो भाग कपाल, दो भाग दाढ़ी, सात भाग भुजा के ऊपर की भुजसंधि और पाठ भाग पैर जानना ॥ १७ ।।
जाणुअमुहसुत्तायो चउदस सोलस अढारपइसारं । समसुत्त-जाव-नाही पयकंकण-जाव छब्भायं ॥ १८॥
दोनों घुटनों के बीच में एक तिरछा सूत्र रखना और नाभि से पैर के कंकण के छः भाग तक एक सीधा समसूत्र तिरछे सूत्र तक रखना । इस समसूत्र का प्रमाण पैरों के कंकण तक चौदह, पिंडी तक सोलह और जानु तक अठारह भाग होता है। अर्थात् दोनों परस्पर घुटने तक एक तिरछा सूत्र रखा जाय तो यह नाभि से सीधे अठारह माग दूर रहता है ।। १८॥
पइसारगब्भरेहा पनरसभाएहिं चरणअंगुठं । दीहंगुलीय सोलस चउदसि भाए कणिडिया ॥ ११ ॥
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