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वास्तुसारे
नकसिहागभा एगंतरि चक्खु चउरदीहत्ते ।
दिवदुदइ इक्कु डोलइ दुभाइ भउ हट्टु छद्दीहे ॥ ११ ॥
नासिका की शिखा के मध्य गर्भसूत्र से एक २ भाग दूर आँख रखना चाहिये । आँख चार भाग लंबी और डेढ़ भाग चौड़ी, आँख की काली कीकी एक भाग दो भाग की भृकुटी और आँख के नीचे का ( कपोल ) भाग छः अंगुल लंबा रखना चाहिये ॥ ११ ॥
नक्कु तिवित्थरि दुदए पिंडे नासरिंग इक्कु श्रद्घ सिहा । पण भाय हर दीहे वित्थरि एगंगुलं जाण ॥ १२ ॥
नासिका विस्तार में तीन भाग, दो भाग उदय में, नासिका का अग्र भाग एक भाग मोटा और अर्द्ध भाग की नाक की शिखा रखना चाहिये । होंठ की लंबाई पांच भाग और विस्तार एक अंगुल का जानना ॥ १२ ॥
पण - उदह चउ - वित्थरि सिरिवच्छं बंभसुत्तमज्झम्मि । दिवडूढंगुलु थणवट्टं वित्थरं उंडत्ति नाहेगं ॥ १३ ॥ ब्रह्मसूत्र के मध्य भाग में छाती में पांच भाग के उदयवाला और चार भाग के विस्तारवाला श्रीवत्स करना । डेढ़ अंगुल के विस्तार वाला गोल स्तन बनाना और एक २ भाग विस्तार में गहरी नाभि करना चाहिये ।। १३ ॥
सिरिवच्छ सिहिणकक्खंतर म्मि तह मुसल छ पण अठ्ठ कमे । मुणि-च-रवि-वसु-वेया कुहिणी मणिबंधु जंघ जाणु पये ॥ १४ ॥
श्रीवत्स और स्तन का अंतर छः भाग, स्तन और काँख का अंतर पांच भाग, मल (स्कंध ) आठ भाग, कुहनी सात अंगुल, मणिबंध चार अंगुल, जंघा बारह भाग जानु आठ भाग और पैर की एड़ी चार भाग इस प्रकार सब का विस्तार जानना ।। १४ ।।
थसुत्त होभाए भुयवारसांस उवरि छह कंधे | नाहीउ किरइ व
कंधाय
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केस अंताओ ॥ १५ ॥
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