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बिम्बपरीक्षा प्रकरणम्
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बारह अंगुल विस्तार में और बारह अंगुल लंबाई में केशांत भाग तक मुख करना चाहिये । उसमें चार अंगुल लंबा ललाट, चार अंगुल लंबी नासिका और चार अंगुल मुख दाढी तक बनाना ।
"केशस्थानं जिनेन्द्रस्य प्रोक्तं पञ्चाङ्गलायतम् ।
उष्णीषं च ततो ज्ञेय-मङ्गुलद्वयमुन्नतम् ॥" जिनेश्वर का केश स्थान पांच अंगुल लंबा करना । उसमें उष्णीष (शिखा) दो अंगुल ऊंची और तीन अंगुल केश स्थान उन्नत बनाना चाहिये । पद्मासन से बैठी प्रतिमा का स्वरूप
"ऊर्ध्वस्थितस्य मानार्द्ध-मुत्सेधं परिकल्पयेत् ।
पर्यङ्कमपि तावत्तु तिर्यगायामसंस्थितम् ॥" कायोत्सर्ग खड़ी प्रतिमा के मान से पद्मासन से बैठी प्रतिमा का मान आधा अर्थात् चौवन (५४) अंगुल जानना । पद्मासन से बैठी प्रतिमा के दोनों घुटने तक सूत्र का मान, दाहिने घुटने से बाँये कंधे तक और बांये घुटने से दाहिने कंधे तक इन दोनों तिरछे सूत्रों का मान, तथा गद्दी के ऊपर से केशांत माग तक लंबे सूत्र का मान, इन चारों सूत्रों का मान बराबर २ होना चाहिये । मूर्ति के प्रत्येक अंग विभाग का मान
मुहकमलु चउदसंगुलु कन्वंतरि वित्थरे दहग्गीवा। छत्तीस-उरपएसो सोलहकडि सोलतणुपिंडं ॥१॥
दोनों कानों के अंतराल में मुख कमल का विस्तार चौदह अंगुल है। गले का विस्तार दस अंगुल, छाती प्रदेश छत्तीस अंगुल, कमर का विस्तार सोलह अंगुल और तनुपिंड (शरीर की मोटाई ) सोलह अंगुल है ॥ ६ ॥
कन्नु दह तिन्नि वित्थरि अड्ढाई हिहि इक्कु प्राधारे । केसंतवड्दु समुसिरु सोयं पुण नयणरेहसमं ॥ १०॥
कान का उदय दश भाग और विस्तार तीन भाग, कान की लोलक अढाई भाग नीची और एक भाग कान का आधार है । केशान्त भाग तक मस्तक के बरापर अर्थात् नयन की रेखा के समानान्तर तक ऊंचा कान बनाना चाहिये ॥१०॥
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