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बिम्बपरीक्षा प्रकरणम्
(८७)
खड़ी प्रतिमा के अंग विभाग
भालं नासा वयणं गीव हियय नाहि गुज्झ जंघाइं । जाणु श्र पिंडि अचरणा 'इक्कारस ठाण नायव्वा ॥ ६ ॥
ललाट, नासिका, मुख, गर्दन, हृदय, नाभि, गुह्य, जंघा, घुटना, पिण्डी और चरण ये ग्यारह स्थान अंगविभाग के हैं ॥ ६॥ अंग विभाग का मान
चउ पंच वेय रामा रवि दिणयर सूर तह य जिण वेया। जिण वेय 'भायसंखा कमेण इत्र उड्ढरूवेण ॥७॥
ऊपर जो ग्यारह अंग विमाग बतलाये हैं, इनके क्रमशः चार, पांच, चार, तीन, बारह, बारह, बारह, चौवीस, चार, चौवीस और चार अंगुल का मान खड़ी प्रतिमा के है । अर्थात् ललाट चार अंगुल. नासिका पांच अंगुल, मुख चार अंगुल, गरदन तीन अंगुल, गले से हृदय तक बारह अंगुल, हृदय से नाभि तक बारह अंगुल, नाभि से गुह्य भाग तक बारह अंगुल, गुह्य भाग से जानु ( घुटना ) तक चौवीस अंगुल, घुटना चार अंगुल, घुटने से पैर की गांठ तक चौवीस अंगुल, इससे पैर के तल तक चार अंगुल, एवं कुल एक सौ आठ अंगुल प्रमाण खड़ी प्रतिमा का मान है ।। ७॥ पासन से बैठी मूर्ति के अंग विभाग
भालं नासा वयणं गीव हियय नाहि गुज्झ जाणू श्र। श्रासीण-बिंबमानं पुब्वविही अंकसंखाई ॥ ८॥
कपाल, नासिका, मुख, गर्दन, हृदय, नाभि, गुह्य और जानु ये भाठ अंग बैठी प्रतिमा के हैं, इनका मान पहले कहा है उसी तरह समझना । अर्थात् कपाल
१ पाठान्तरे-“भालं नासा वयणं थणसुत्तं नाहि गुज्झ ऊरू अ।
जाणु अ अंधा चरणा बस दह ठाणाणि जाणिज्जा ॥ २ पाठान्तरे-"चड पंच वेग तेरस चउदस दिगनाह तह य जिण वेया।
जिण या भाषसंखा कमेण इस उतरवेश।
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