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वास्तुसारे
चार, नासिका पांच, मुख चार, गला तीन, गले से हृदय तक बारह, हृदय से नामि तक बारह, नाभि से गुह्य ( इन्द्रिय ) तक बारह और जानु (घुटना ) माग चार अंगुल, इमी प्रकार कुल छप्पन अंगुल बैठी प्रतिमा का मान है ॥ ८॥ दिगम्बराचार्य श्री वसुनंदि कृत पूतिष्ठासार में दिगम्बर जिनमूर्ति का स्वरूप इस प्रकार है
"तालमात्रं मुखं तत्र ग्रीवाधश्चतुरङ्गुलम् । कण्ठतो हृदयं यावद् अन्तरं द्वादशाङ्गुलम् ।। तालमात्रं ततो नाभि-नाभिर्मेदान्तरं मुखम् । मेदजान्वतरं तज्ज्ञ-हस्तमात्रं प्रकीर्तितम् ॥ वेदाङ्गुलं भवेज्जानु-र्जानुगुल्फान्तरं करः ।
वेदाङ्गुलं समाख्यातं गुल्फपादतलान्तरम् ।।" मुख की ऊंचाई बारह अंगुल, गला की उंचाई चार अंगुल, गले से हृदय तक का अन्तर बारह अंगुल, हृदय से, नाभी तक का अन्तर बारह अंगुल, नाभि से लिंग तक अन्तर बारह अंगुल, लिंग से जानु तक अन्तर चौवीस अंगुल, जानु (घुटना) की ऊंचाई चार अंगुल, जानु से गुल्फ (पैर की गांठ) तक अंतर चौवीस अंगुल और गल्फ से पैर के तल तक अंतर चार अंगुल, इस प्रकार कायोत्सर्ग खड़ी प्रतिमा की ऊंचाई कुल एक सौ आठ (१०८) अंगुल है ।
"द्वादशाङ्गुलविस्तीर्ण-मायतं द्वादशाङ्गुलम् । मुखं कुर्यात् स्वकेशान्तं त्रिधा तच्च यथाक्रमम् ।। वेदाङ्गलमायतं कुर्याद् ललाटं नासिका मुखम् "
१. मीस्त्री जगन्नाथ अम्बाराम सौमपुरा ने अपना वृहद् शिल्पशास्त्र भाग २ में जो जिन प्रतिमा का स्वरूप बिना बिचार पूर्वक लिखा है वह बिल्कुल प्रामाणिक नहीं है । ऐसे अन्य मूर्तियों के लिये भी जानना।
२. जिन संहिता और रुपमंडन में जिन प्रतिमा का मान दश ताल अर्थात एक सौ बीस (१२.) भंगुल का भी माना है।
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