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________________ भिक्षुन्यायकर्णिका 20. आत्मिके लब्ध्युयोगौ। कर्मविलयविशेषोद्भव आत्मप्रकाशः लब्धिः, तस्यार्थग्रहणव्यापार: उपयोगः। सत्यां लब्धौ निर्वृत्त्युपकरणोपयोगाः। सत्याञ्च निर्वृत्तौ उपकरणोपयोगौ। सत्युपकरणे उपयोगः । लब्धि और उपयोग ये दो आत्मिक इन्द्रियां (भावेन्द्रिय) हैं। ज्ञानावरण और दर्शनावरण कर्म के विलय विशेष से उत्पन्न आत्म-प्रकाश को लब्धि-इन्द्रिय कहा जाता है। उसकी अर्थ-ग्रहण की प्रवृत्ति को उपयोग-इन्द्रिय कहा जाता है। इनके होने का क्रम इस प्रकार है- लब्धि इन्द्रिय होने पर निर्वृत्ति, उपकरण और उपयोग इन्द्रियां होती हैं। निर्वृत्ति इन्द्रिय के होने पर उपकरण और उपयोग इन्द्रियां होती हैं। उपकरण इन्द्रिय होने पर उपयोग इन्द्रिय होती है। न्या. प्र.- लब्धिः उपयोगश्चेतीन्द्रियद्वयम् आत्मिके इन्द्रिये स्तः । इमे एव भावेन्द्रियपदेनापि कथ्यते। ज्ञानावरणीयकर्मणो दर्शनावरणीयकर्मणश्च विलयविशेषेणोत्पन्नः आत्मप्रकाशो लब्धिः इन्द्रियं कथ्यते । लब्धीन्द्रियस्य या अर्थग्रहणप्रवृत्तिः सा एव उपयोगेन्द्रियमितिबोध्यम्। एषामिन्द्रियाणां भवनम्-अस्तित्वं कथं सम्पद्यते? इत्यस्मिन् विषये वर्ततेऽयं क्रमः-सत्यां लब्धौ अर्थात् लब्धीन्द्रियस्य अस्तित्वं यदा सिद्धं भवति तदैव निर्वृत्तीन्द्रियम् उपकरणेन्द्रियमुपयोगेन्द्रियञ्चेति इन्द्रियाणि सम्पद्यन्ते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002672
Book TitleBhikshunyayakarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages286
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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