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भिक्षुन्यायकर्णिका
10. न नयनमनसोर्व्यञ्जनम्॥
नयनमनसोरर्थेन साक्षात् संबन्धो न भवति। व्यवधिमत्प्रकाशकत्वात् नैते प्राप्यकारिणी॥ दृश्यवस्तुनश्चक्षुषि प्रतिबिम्बेऽपि साक्षात् संबन्धाभावात् नात्र दोषः। चक्षु और मन के व्यञ्जनावग्रह नहीं होता। ___चक्षु और मन का अर्थ के साथ साक्षात् सम्बन्ध नहीं होता।
वे व्यवहित अर्थ को जानते हैं इसलिए प्राप्यकारी नहीं हैं। चार इन्द्रिय प्राप्यकारी (प्राप्त अर्थ के प्रकाशक) हैं, चक्षु और मन अप्राप्यकारी हैं। इन दोनों का एक साथ प्रतिपादन करने के लिए उचित देश आदि में अवस्थानात्मक योग का प्रयोग किया गया है।
दृश्य वस्तु का आंख में प्रतिबिम्ब पड़ता है, किन्तु उस वस्तु के साथ साक्षात् सम्बन्ध नहीं होता, अत: पूर्वोक्त स्थापना में कोई आपत्ति नहीं है। न्या. प्र.- नयनमनसो र्व्यञ्जनावग्रहो न भवति। एतस्य कारणमिदं यत् अनयोरर्थेन सह साक्षात् संबन्धो न भवति । अर्थेन सहानयोः साक्षात् संबन्धाभावोऽत एव भवति यत् नयनं मनश्च व्यवहितमेवार्थ प्रकाशयतः। न चेमे प्राप्यकारिणी । वस्तु प्राप्य प्रकाशकत्वं नोपलभ्यतेऽत्र। इन्द्रियाणां मध्ये रसनस्पर्शनघ्राणश्रोत्राणि चेति चत्वारि एवेन्द्रियाणि
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