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भिक्षुन्यायकर्णिका नित्य ही है, अनित्य ही है-ऐसी ऐकान्तिक बुद्धि भी विपरीत ज्ञान है।
13.
न्या. प्र. – अतत्त्वे- तद्भिन्नेऽतस्मिन् वस्तुनि तदेवेति अध्यवसायो निश्चयो विपर्ययः। यथा वाष्पयानमारूढो जनः स्थिरेष्वपि वृक्षेषु गतिशीलतां प्रत्येति । इदं विपरीतज्ञानं विपर्यय इति नाम्ना ख्यातम्। अथवा पदार्थो नित्य एव अनित्य एव वा एतादृशी ऐकान्तिकी बुद्धिरपि विपर्ययपदेनोच्यते । एवमेव धातुवैषम्यात् मधुरोऽपि पदार्थो यदि तिक्तवत् प्रतीयेत, किंवा शीघ्रभ्रमणात् अलातचक्रेऽपि चक्रप्रतीतिर्जायेत तदा सर्वमिदं ज्ञानं विपर्ययात्मकमेवेति वेदितव्यम्। इदानीं संशयं लक्षयति - अनिर्णायी विकल्पः संशयः'। यथा-गौरयं गवयो वा। निर्णायी विकल्पस्तु प्रमाणमेव, यथा-पदार्थो नित्यश्च
अनित्यश्च। निर्णयशून्य विकल्प का नाम संशय है।
जैसे—यह गौ है अथवा गवय?
जिस विकल्प में निर्णय होता है, वह प्रमाण है, जैसेपदार्थ नित्य भी है और अनित्य भी है।
(जैनदर्शन के अनुसार प्रत्येक पदार्थ अपेक्षा भेद से नित्य भी होता है और अनित्य भी होता है। नित्य और 1. दूरान्धकारप्रमादाद्ययथार्थत्वहेतुसामान्येऽपि विपर्यये एकांशस्य अध्यवसाय:,
अनध्यवसायसंशययोस्तु अनेकांशानामनिर्णय इत्यनयोर्विपर्ययाद् भेदः।
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