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परिशिष्ट
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अप्रदर्शितान्वय-शब्द अनित्य है, क्योंकि वह कृतक है, जैसे - घड़ा। यह अप्रदर्शितान्वयदृष्टान्ताभास है। अन्वय होने पर भी यहां उसे शब्द के द्वारा बताया नहीं गया है, इसलिए यह परार्थानुमान के निरूपण का दोष है। अव्यतिरेक-विवक्षित पुरुष वीतराग नहीं है, क्योंकि वह बोलता है। जो वीतराग होता है वह वक्ता नहीं होता, जैसे उपलखण्ड। यह अव्यतिरेक दृष्टान्ताभास है। यद्यपि दृष्टान्त रूप उपलखण्ड में अवीतरागता
और वक्तृत्व दोनों ही धर्म नहीं हैं, फिर भी व्याप्ति के द्वारा व्यतिरेक असिद्ध है। अप्रदर्शितव्यतिरेक – शब्द अनित्य है क्योंकि वह कृतक है, जैसे - आकाश। यह अप्रदर्शितव्यतिरेक दृष्टान्ताभास है, क्योंकि जो अनित्य नहीं होता वह कृतक भी नहीं होता। इस प्रकार व्यतिरेक होने पर भी वह यहां प्रदर्शित नहीं किया गया है। न्या. प्र.- व्यतिरेकिदृष्टान्ताभासः - असिद्धसाध्यः - अपौरुषेयः शब्दः अमूर्तत्वात् यदपौरुषेयं न भवति तदमूर्तमपि नास्ति यथा परमाणुः । अत्र शब्दे अपौरुषेयत्वं साध्यं वर्तते । अमूर्तत्वञ्चाबहेतुः। अत्रानुमाने वैधर्म्यदृष्टान्तत्वेन उपन्यस्ते परमाणौ साध्यव्यतिरेक स्य
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