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भिक्षुन्यायकर्णिका
है। वह रथ्यापुरुष में संदिग्ध है, इसलिए यह
संदिग्धसाधन दृष्टान्ताभास है। (च) संदिग्धोभय-विवक्षित पुरुष अल्पज्ञ है, क्योंकि वह
रागी है, जैसे - रथ्यापुरुष । यहां रथ्यापुरुष में अल्पज्ञता और राग दोनों ही संदिग्ध हैं इसलिए यह सदिग्धोभय दृष्टान्ताभास है। दूसरे का आशय जानना कठिन होता है इसलिए अन्वयी रथ्यापुरुष में राग और अल्पज्ञता का अस्तित्व
संदिग्ध है। (छ) विपरीतान्वय-शब्द अनित्य है, क्योंकि वह कृतक
है । जो अनित्य होता है, वह कृतक होता है, जैसेघड़ा। यह विपरीतान्वय है। प्रसिद्ध के अनुवाद से अप्रसिद्ध को साधा जाता है। यहां कृतकत्व हेतु प्रसिद्ध है और अनित्यत्व साध्य होने के कारण अप्रसिद्ध है। अनुवाद में प्रसिद्ध का यत् शब्द से और अप्रसिद्ध का तत् शब्द से निर्देश करना उचित है, जैसे - जो कृतक होता है वह अनित्य होता है। यहां इस क्रम का विपर्यय हुआ है,
इसलिए यह विपरीतान्वय दृष्टान्ताभास है। न्या. प्र.- क साध्यविकल:- 'अपौरुषेयः शब्दः अमूर्तत्वात्
दुःखवत्' अत्र दुःखं दृष्टान्तरूपेणोपन्यस्तम्। तच्च दु:खं पुरुषव्यापारं विना नोत्पद्यत इति दृष्टान्ते
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