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________________ परिशिष्ट 5. अन्वयी दृष्टान्ताभास (क) साध्यविकल - शब्द अपौरुषेय है, क्योंकि वह अमूर्त है, जैसे दुःख । दुःख मनुष्य की प्रवृत्ति के बिना नहीं होता, इसलिए वह पौरुषेय है । इसका प्रयोग अपौरुषेय साध्य के लिए किया गया है । इसलिए यह साध्यविकल दृष्टान्ताभास है । (ख) साधनविकल शब्द अपौरुषेय है, क्योंकि वह अमूर्त है, जैसे- परमाणु । यहां साध्य धर्म अपौरुषेयत्व है । वह परमाणु में है किन्तु साधन धर्म अमूर्तत्व - परमाणु में नहीं है, क्योंकि वह मूर्त होता है इसलिए यह साधनविकल दृष्टान्ताभास है । २३१ — (ग) उभयविकल - शब्द अपौरुषेय है, क्योंकि वह अमूर्त है, जैसे- घड़ा। यहां साध्यधर्म अपौरुषेयत्व और साधनधर्म अमूर्तत्व है। वे दोनों घड़े में नहीं है, इसलिए उभयविकल दृष्टान्ताभास है। (घ) संदिग्धसाध्य - विवक्षित पुरुष रागी है, क्योंकि वह बोलता है, जैसे रथ्यापुरुष । यहां साध्यधर्म राग है । वह रथ्यापुरुष में संदिग्ध है, क्योंकि उसमें राग का निर्णायक लिंग उपलब्ध नहीं है, इसलिए वह . संदिग्धसाध्य दृष्टान्ताभास है । Jain Education International (ङ) संदिग्धसाधन - विवक्षित पुरुष मरणधर्मा है, क्योंकि वह रागी है, जैसे रथ्यापुरुष । यहां साधनधर्म राग For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002672
Book TitleBhikshunyayakarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages286
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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