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परिशिष्ट
5.
अन्वयी दृष्टान्ताभास
(क) साध्यविकल - शब्द अपौरुषेय है, क्योंकि वह अमूर्त है, जैसे दुःख । दुःख मनुष्य की प्रवृत्ति के बिना नहीं होता, इसलिए वह पौरुषेय है । इसका प्रयोग अपौरुषेय साध्य के लिए किया गया है । इसलिए यह साध्यविकल दृष्टान्ताभास है ।
(ख) साधनविकल शब्द अपौरुषेय है, क्योंकि वह अमूर्त है, जैसे- परमाणु । यहां साध्य धर्म अपौरुषेयत्व है । वह परमाणु में है किन्तु साधन धर्म अमूर्तत्व - परमाणु में नहीं है, क्योंकि वह मूर्त होता है इसलिए यह साधनविकल दृष्टान्ताभास है ।
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(ग) उभयविकल - शब्द अपौरुषेय है, क्योंकि वह अमूर्त है, जैसे- घड़ा। यहां साध्यधर्म अपौरुषेयत्व और साधनधर्म अमूर्तत्व है। वे दोनों घड़े में नहीं है, इसलिए उभयविकल दृष्टान्ताभास है।
(घ) संदिग्धसाध्य - विवक्षित पुरुष रागी है, क्योंकि वह बोलता है, जैसे रथ्यापुरुष । यहां साध्यधर्म राग है । वह रथ्यापुरुष में संदिग्ध है, क्योंकि उसमें राग का निर्णायक लिंग उपलब्ध नहीं है, इसलिए वह . संदिग्धसाध्य दृष्टान्ताभास है ।
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(ङ) संदिग्धसाधन - विवक्षित पुरुष मरणधर्मा है, क्योंकि वह रागी है, जैसे
रथ्यापुरुष । यहां साधनधर्म राग
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