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भिक्षुन्यायकर्णिका
3.
" (ग) उभयाऽसिद्ध:- अनित्यः शब्दः, चाक्षुषत्वात् ।
अयमुभयाऽसिद्धः। असिद्धहेत्वाभास तीन प्रकार का होता है(क) वादी असिद्ध- जैसे आत्मा परिणामी है, क्योंकि
वह उत्पाद-व्यय धर्म से युक्त है। यह हेतुवादी नैयायिकों के लिए असिद्ध है, क्योंकि उनके अभिमत
में आत्मा कूटस्थ नित्य है। (ख) प्रतिवादी असिद्ध-जैसे वृक्ष चेतनावान हैं, क्योंकि
सम्पूर्ण त्वचा उतारने पर उनकी मृत्यु हो जाती है। यह हेतु प्रतिवादी बौद्धों के लिए असिद्ध है, क्योंकि उन्हें वृक्षों में विज्ञानेन्द्रिय और आयुनिरोध लक्षणवाला
मरण मान्य नहीं है। (ग) उभय असिद्ध-जैसे शब्द नित्य है, क्योंकि वह
चाक्षुष है। हेतुवादी और प्रतिवादी दोनों के लिए
असिद्ध है। न्या. प्र.- 1. वादि-असिद्धः-आत्मा परिणामी उत्पादा
दिमत्वात्।
अत्र - उत्पादादिमत्वेन हेतुना आत्मनः परिणामा-- दिमत्वं साधितमस्ति। अयं सिद्धान्तो वादिनो नैयायिकस्यासिद्धोऽस्ति। नैयायिकमते आत्मा कूटस्थो नित्यः। अत्र परिणमनशीलत्वं नैवोपयुज्यते।
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