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________________ २१४ भिक्षुन्यायकर्णिका (घ) कारण की अनुपलब्धि-इस व्यक्ति के प्रशम (संवेग, निर्वेद, अनुकम्पा, आस्तिक्य) आदि भाव उपलब्ध नहीं हैं, क्योंकि तत्त्वार्थ-श्रद्धा (सम्यग्दर्शन) का अभाव है। (ङ) पूर्वचर की अनुपलब्धि-मुहूर्त के बाद स्वातिनक्षत्र का उदय नहीं होगा, क्योंकि अभी तक चित्रा का उदय नहीं हुआ है। (च) उत्तरचर की अनुपलब्धि-मुहूर्त पहले पूर्वभाद्रपदा नक्षत्र का उदय नहीं हुआ था क्योंकि अभी तक उत्तर भाद्रपदा का उदय नहीं हुआ है। सहचर की अनुपलब्धि-इसका ज्ञान सम्यक् नहीं है, क्योंकि सम्यग्दर्शन की अनुपलब्धि है। न्या. प्र.- स्वकीयेन नास्तित्वेन वस्तुनो नास्तित्वं ये साधयन्ति ते हेतवः अभावात्मका: प्रतिषेधसाधकहेतवः कथ्यन्ते। ते च सप्त प्रकारका भवन्ति। तेषां नामानि सन्तीमानि- स्वभावानुपलब्धि, व्यापकानुपलब्धिः, कार्यानुपलब्धिः, कारणानुपलब्धिः, पूर्वचरानुपलब्धिः , उत्तरचरानुपलब्धिः , सहचरानुपल ब्धिश्च। (क) स्वभावानुपलब्धि- नात्र पुस्तकं दृश्यानुपलब्धेः अत्र दृश्यवस्तुनोऽभावेन पुस्तकस्याभावः साधितः । अत्र दृश्यानुपलब्धिरिति हेतुः अभावात्मकोऽस्ति। अयं हेतुः स्वकीयेन नास्तित्वेन पुस्तकस्य नास्तित्वं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002672
Book TitleBhikshunyayakarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages286
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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