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भिक्षुन्यायकर्णिका
(घ) कारण की अनुपलब्धि-इस व्यक्ति के प्रशम (संवेग,
निर्वेद, अनुकम्पा, आस्तिक्य) आदि भाव उपलब्ध नहीं हैं, क्योंकि तत्त्वार्थ-श्रद्धा (सम्यग्दर्शन) का
अभाव है। (ङ) पूर्वचर की अनुपलब्धि-मुहूर्त के बाद स्वातिनक्षत्र
का उदय नहीं होगा, क्योंकि अभी तक चित्रा का
उदय नहीं हुआ है। (च) उत्तरचर की अनुपलब्धि-मुहूर्त पहले पूर्वभाद्रपदा
नक्षत्र का उदय नहीं हुआ था क्योंकि अभी तक उत्तर भाद्रपदा का उदय नहीं हुआ है। सहचर की अनुपलब्धि-इसका ज्ञान सम्यक् नहीं है, क्योंकि सम्यग्दर्शन की अनुपलब्धि है। न्या. प्र.- स्वकीयेन नास्तित्वेन वस्तुनो नास्तित्वं ये साधयन्ति ते हेतवः अभावात्मका: प्रतिषेधसाधकहेतवः कथ्यन्ते। ते च सप्त प्रकारका भवन्ति। तेषां नामानि सन्तीमानि- स्वभावानुपलब्धि, व्यापकानुपलब्धिः, कार्यानुपलब्धिः, कारणानुपलब्धिः, पूर्वचरानुपलब्धिः , उत्तरचरानुपलब्धिः , सहचरानुपल
ब्धिश्च। (क) स्वभावानुपलब्धि- नात्र पुस्तकं दृश्यानुपलब्धेः अत्र
दृश्यवस्तुनोऽभावेन पुस्तकस्याभावः साधितः । अत्र दृश्यानुपलब्धिरिति हेतुः अभावात्मकोऽस्ति। अयं हेतुः स्वकीयेन नास्तित्वेन पुस्तकस्य नास्तित्वं
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