________________
परिशिष्ट
२१३
4. अभावेन प्रतिषेधहेतवः (अविरुद्धानुपलब्धेः साधनानि)
(क) स्वभावानुपलब्धिरुदाहृता। (ख) व्यापकानुपलब्धिः, यथा-नास्त्यत्र प्रदेशे पनसः,
पादपानुपलब्धेः। (ग) कार्यानुपलब्धिः, यथा नास्त्यताप्रतिहतशक्तिकं
बीजम् अंकुराऽनवलोकनात्।। (घ) कारणानुपलब्धिः , यथा-न सन्त्यस्य प्रशमप्रभृतयो
भावाः, तत्त्वार्थश्रद्धानाभावात्। (ङ) पूर्वचरानुपलब्धिः, यथा-नोद्गमिष्यति मुहूर्तान्ते
स्वातिनक्षत्रम्, चित्रोदयादर्शनात्। (च) उत्तरचरानुपलब्धिः , यथा-नोदगमत् पूर्वभाद्रपदा,
मुहूर्तात् पूर्वमुत्तरभाद्रपदोद्गमानवगमात् । (छ) सहचरानुपलब्धिः, यथा-नास्त्यस्य सम्यग्ज्ञानम्,
सम्यग्दर्शनानुपलब्धेः।
(प्रमाणनयतत्त्वालोकालङ्कारः३।८५-१०२) .. अभाव से प्रतिषेधहेतु (अविरुद्ध की अनुपलब्धि के साधन) (क) स्वभाव की अनुपलब्धि मूलग्रन्थ में उदाहृत है। (ख) व्यापक की अनुपलब्धि-इस प्रदेश में कटहल नहीं
है, क्योंकि यहां कोई वृक्ष उपलब्ध ही नहीं है। (ग) कार्य की अनुपलब्धि-यह बीज अप्रतिहतशक्ति
वाला नहीं है, क्योंकि अंकुर नहीं फूटा है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org