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________________ परिशिष्ट २०९ रागद्वेषकालुष्याऽकलङ्कितज्ञानसम्पन्नत्वात् । (ङ) विरोधिपूर्वचरोपलब्धिः, यथा-नोद्गमिष्यति ___ मुहूर्तान्ते पुष्यतारा, रोहिण्युद्गमात्। (च) विरोध्युत्तरचरोपलब्धिः, यथा-नोदगान् मुहूर्तात्पूर्वं मृगशिरः पूर्वाफाल्गुन्युदयात्। (छ) विरोधिसहचरोपलब्धिः, यथा-नास्त्यस्य मिथ्याज्ञानम्, सम्यग्दर्शनात्। प्रतिषेधहेतु : (3) भाव से प्रतिषेधहेतु (विरुद्ध उपलब्धि के साधन) (क) स्वभाव की उपलब्धि-मूलग्रन्थ में उदाहृत है। (ख) विरोधीव्याप्य की उपलब्धि-इस पुरुष का तत्त्व में निश्चय नहीं है, क्योंकि उसमें उसे संदेह है। (ग) विरोधीकार्य की उपलब्धि-इस पुरुष के क्रोध आदि उपशान्त नहीं हैं, क्योंकि इसके मुंह पर क्रोध के लक्षण दिखाई देते हैं। (घ) विरोधीकारण की उपलब्धि-इस महर्षि का वचन असत्य नहीं है, क्योंकि यह राग-द्वेष की कलुषता से अकलंकित ज्ञान से सम्पन्न है।। (ङ) विरोधीपूर्वचर की उपलब्धि-मुहूर्त के बाद पुष्यतारा का उदय नहीं होगा, क्योंकि रोहिणी नक्षत्र का उदय हो चुका है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002672
Book TitleBhikshunyayakarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages286
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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