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________________ २०६ भिक्षुन्यायकर्णिका शिक्षाभावात् । अत्र विधेयमज्ञानम्, तद्विरुद्धं ज्ञानं, तस्य कारणं शिक्षा, तस्या अभावात्। (ग) विरोधिकार्यानुपलब्धिः- अस्वास्थ्यमस्मिन् मनुष्ये समस्ति, मांसलताऽनालोकनात्। अत्र विधेयमस्वास्थ्यम्, तद्धिरुद्धं स्वास्थ्यम्, तस्य कार्यं मांसलता, तस्या अनुपलब्धिः । (घ) विरोधिव्याप्यानुपलब्धिः- अस्त्यत्र छाया, औष्ण याऽनुपलब्धेः। अत्र विधेया छाया तद्विरुद्धस्ताप:, तद्व्याप्यस्यौष्णस्याऽनुपलब्धिः।। अभाव से विधिहेतु (विरुद्ध की अनुपलब्धि के साधन)(क) स्वभावानुपलब्धि का उदाहरण मूलग्रन्थ में है। (ख) विरोधी कारणानुपलब्धि-इस समाज में अज्ञान है, क्योंकि शिक्षा का अभाव है। यहां विधेय है अज्ञान, इसका विरोधी है ज्ञान, ज्ञान का कारण है शिक्षा, उसका यहां अभाव है। (ग) विरोधी कार्यानुपलब्धि-यह मनुष्य अस्वस्थ है, क्योंकि इसमें मांसलता का अभाव है। यहां विधेय है अस्वास्थ्य, इसका विरोधी तत्त्व है स्वास्थ्य । स्वास्थ्य का कार्य है मांसलता, उसका यहां अभाव है। (घ) विरोधी व्याप्यानुपलब्धि-यहां छाया है, क्योंकि उष्णता का अभाव है। यहां विधेय है छाया, इसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002672
Book TitleBhikshunyayakarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages286
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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