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सप्तमो विभाग:
चतुरङ्ग न्यायशास्त्रमिति प्रतिश्रुतमादौ पुस्तकस्यास्य। तत्र प्रमाणप्रमेयप्रमितीत्याख्यानि व्याख्यातानि त्रीणि अङ्गानि । साम्प्रतं तद्घटकं प्रमातृनामकं तत्त्वं व्याख्यातुकामः सूत्रमवतारयतिस्वपरावभासी प्रत्यक्षादिप्रसिद्ध आत्मा प्रमाता। स्वञ्च परञ्चावभासते प्रकाशयतीत्येवंशीलः, अहं सुखी, अहं दुःखीत्यादि निदर्शनेन, प्रत्यक्षादिप्रमाणेन प्रमाणित आत्मा प्रमाता भवति। स्वप्रकाशी एवं परप्रकाशी तथा प्रत्यक्ष आदि प्रमाणों से प्रसिद्ध आत्मा को प्रमाता कहा जाता है।
आत्मा ही प्रमाता-प्रमाण करने वाला है। वह स्वयं अपने चैतन्य से प्रकाशित है और ज्ञेय-विषय को प्रकाशित करता है। मैं सुखी हूँ, मैं दु:खी हूँ, इत्यादि-इस निदर्शन वाले प्रत्यक्ष आदि प्रमाण के द्वारा वह प्रमाणित है।
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