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भिक्षुन्यायकर्णिका क्रियापरिणति के अनुरूप ही शब्द-प्रयोग का स्वीकार करने वाले नय को एवंभूत नय कहा जाता है।
जैसे- भिक्षण की क्रिया में प्रवृत्त व्यक्ति के लिए ही भिक्षु, वाणी के संयम में प्रवृत्त व्यक्ति के लिए ही वाचंयम
और तपस्या में प्रवृत्त व्यक्ति के लिए ही तपस्वी शब्द का प्रयोग किया जा सकता है।
समभिरूढ़ नय शब्दगत क्रिया में अप्रवृत्त व्यक्ति के लिए भी तद्वाचक शब्द-प्रयोग को मान्य करता है और एवंभूत नय शब्दगत क्रिया में प्रवृत्त अर्थ के लिए ही तद्वाचक शब्द-प्रयोग को मान्य करता है। इसलिए एवंभूत नय समभिरूढ़ नय से भिन्न है। न्या. प्र.-अयं नयः क्रियायां परिणतेऽर्थे एव तत्तच्छब्दप्रयोगं स्वीकरोति । यथा - यः पुरुषो भिक्षणक्रियायां प्रवृत्तो भवति चेत् तदैव स भिक्षुरिति वक्तुं शक्यते । एवमेव इन्दनादिक्रियायां परिणतोऽर्थस्तक्रियांकाले एव इन्द्रादिशब्दैः वक्तुं शक्यते। यदि शब्दवाच्यक्रियायां तस्य पुरुषस्य प्रवृत्ति नास्ति तदा तत्र तस्य शब्दस्य प्रयोगः कथमपि भवितुं नार्हतीति भावः। एवमेव यः पुरुषो वाणीसंयमने प्रवृत्तः स एव केवलं वाचंयम इत्युच्यते । एवमेव तपश्चरणे प्रवृत्त एव जनः तपस्वीति शक्यते वक्तुं नान्यथा।
समभिरूढ़ नयस्तु क्रियायाम् अप्रवृत्तं जनमभिलक्ष्यापि तत्र तवाचकशब्दस्य प्रयोगं स्वीकरोति।
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