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भिक्षुन्यायकर्णिका
1. स्यादस्त्येव स्यानास्त्येव। 2. स्यादस्त्येव स्यादवक्तव्यमेव। 3. स्यानास्त्येव स्यादवक्तव्यमेव। 4. स्यादस्त्येव स्यान्नास्त्येव स्यादवक्तव्यमेव । सर्वेषां योगेन सप्तभगी जायते। स्याद्वाद के मुख्यतः तीन भंग हैं, जैसे : 1. स्यात् अस्ति एव। 2. स्यात् नास्ति एव। 3. स्यात् अवक्तव्य एव। यहाँ स्यात् शब्द अनेकान्त का वाचक है। स्व द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से पदार्थ में अस्तित्व होता है। पर द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव की अपेक्षा से पदार्थ में नास्तित्व होता है। एक साथ अस्तित्व और नास्तित्व दोनों धर्मों की अपेक्षा करने पर पदार्थ में अवक्तव्यत्व होता है। ये तीनों भंग वस्तु के प्रत्येक धर्म के साथ जोड़ने चाहिए। इन तीनों के संयोग से चार भंग और बनते हैं :1. स्यात् अस्ति एव-स्यात् नास्ति एव। 2. स्यात् अस्ति एव-स्यात् अवक्तव्य एव। 3. स्यात् नास्ति एव-स्यात् अवक्तव्य एव। 4. स्यात् अस्ति एव-स्यात् नास्ति एव।
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