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तृतीयो विभागः
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38. साक्षात् साहाय्यकारि निमित्तम्।
यथा-घटस्य चक्रसूत्रादि, अंकुरस्य वा जलातपपवनादि। निर्वर्तकस्तु न नाम नियतमपेक्ष्यतेऽकृष्टप्रभवतृणादौ। यत्र घटादौ कुलालवद् सव्यपेक्षस्तत्र निमित्तान्तर्गत एवेति कारणद्वयमेव। सहकारिकारणमिति पर्यायः । साक्षात्सहायता करने वाले कारण को निमित्त कारण कहते हैं।
जैसे- घड़े के निमित्त कारण हैं चक्र, सूत्र आदि। अंकुर के निमित्त कारण हैं जल, धूप, पवन आदि। निर्वर्तक-(कर्ता) कार्य की उत्पत्ति में निश्चित रूप से अपेक्षित नहीं होता, जैसे- अनुप्त तृण । और जहाँ घड़े आदि के निर्माण में कुम्हार आदि कर्ता की अपेक्षा होती है वहाँ वे निमित्त कारण के अन्तर्गत ही समाविष्ट हो जाते हैं। इसलिए कारण दो ही हैं। सहकारी कारण इसका दूसरा नाम है। न्या. प्र.- यः खलु कार्योत्पत्तौ साक्षात् सहायतां करोति स तस्य कार्यस्य निमित्तकारणं भवति। यथा- चक्रम्-सूत्रम् च घटस्य निमित्त कारणं भवति। अंकुरस्य निमित्तकारणं च जलम्आतपः पवनश्च भवति ।
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