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________________ ७६ भिक्षुन्यायकर्णिका (ङ) उत्तरचर-विधिहेतु- आज रविवार है, क्योंकि कल सोमवार होगा। यहाँ सोमवार रविवार का उत्तरचर हेतु है। (च) कार्य-विधिहेतु- आकाश में सूर्य है, क्योंकि धूप दिखाई दे रही है। यहाँ आतप सूर्य का कार्य हेतु है। (छ) कारण-विधिहेतु- वर्षा होने वाली है, क्योंकि विशिष्ट मेघ मंडरा रहा है। यहाँ मेघ वर्षा का कारण हेतु है। भावेन विधिहेतवः(क) स्वभावो विधिहेतु:- अनित्यं गृहं कृतकत्वात्। अत्र कृतकत्वम् अनित्यत्वस्य स्वभावहेतुरस्ति। अनित्यं वस्तु कृतकमेव भवतीति कृतकत्वस्य स्वभावहेतुत्वे न कश्चन विसंवादः। (ख) सहचरो विधिहेतु:- आमे रूपं रसात् । आने यदा मधुरो रसो भवति तदा तदीयं परिवर्तते रूपम् । तस्य च रजन्यामास्वाद्यमानस्य आम्रस्य रसमास्वाद्य तत्र रूपानुमानं भवति । वस्तुतस्तु अत्र रूपरसयोर्जनिका एकैव सामग्री। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002672
Book TitleBhikshunyayakarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages286
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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