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________________ ७५ तृतीयो विभागः 1. भावेन विधिहेतवः (क) स्वभाव :- अनित्यं गृहम्, कृतकत्वात्। (ख) सहचर :- आने रूपम्, रसात्। (ग) व्याप्य :- अस्त्यत्र वृक्षत्वम्, निम्बात् । (घ) पूर्वचर :- अद्य सोमवारः, ह्यो रविवार श्रुतेः । (ङ) उत्तरचरः- अद्य रविवारः, श्वः सोमवारश्रुतेः । (च) कार्यम् :- सादित्यं नभः आतपात्। (छ) कारणम् :- भाविनी वृष्टिः, विशिष्टमेघोन्नतेः । भावात्मक विधिसाधक हेतु के सात प्रकार हैं : (क) स्वभाव-विधिहेतु- घर अनित्य है, क्योंकि वह कृतक है। यहाँ कृतकता अनित्यता का स्वभाव हेतु है। (ख) सहचर-विधिहेतु- आम में रूप हैं, क्योंकि उसमें रस है। यहाँ 'रस' रूप का सहचर हेतु है। (ग) व्याप्य-विधिहेतु- यहाँ वृक्षत्व है, क्योंकि नीम उपलब्ध हो रहा है। यहाँ नीम व्यापक वृक्षत्व का व्याप्य-हेतु है। (घ) पूर्वचर-विधिहेतु- आज सोमवार है, क्योंकि कल रविवार था। यहाँ रविवार सोमवार का पूर्वचर हेतु है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002672
Book TitleBhikshunyayakarnika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2007
Total Pages286
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Philosophy
File Size9 MB
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