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तृतीयो विभाग:
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एवञ्च पूर्वपश्चाद्भावित्वरूपः क्रमभावोऽत्रापि स्पष्ट एवास्ति। अविनाभाविनो हेतून् प्रस्तुत्य केन हेतुना कीदृशं कार्यं भवतीति प्रतिपादयितुकामः सूत्रमवतारयति
14. स्वभावः सहभावः क्रमभावश्च भावाभावाभ्यां
विधिप्रतिषेधयोः।
स्वभावादयः स्वस्य भावेन अभावेन वा अपरस्य भावं साधयन्तो विधेः, अभावं साधयन्तश्च प्रतिषेधस्य हेतवो भवन्ति। स्वभाव, सहभाव और क्रमभाव अपने भाव (अस्तित्व) या अभाव (नास्तित्व) से विधि तथा प्रतिषेध के हेतु बनते हैं।
स्वभाव आदि अपने भाव या अभाव से वस्तु के भाव (अस्तित्व) को साधते हुए विधि हेतु और अभाव (नास्तित्व) को साधते हुए प्रतिषेध हेतु कहलाते हैं। उनके चार वर्ग होते हैं :1. भावात्मक विधिसाधक 2. अभावात्मक विधिसाधक 3. भावात्मक __ प्रतिषेधसाधक 4. अभावात्मक प्रतिषेधसाधक
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