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आदर्श जीवन ।
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ही उत्तम है। पढ़ने योग्य मुनियोंको आप इस पाठशालासे लाभ उठानेकी प्रेरणा करें।" । _ श्रीवीरविजयजी महाराजने यह पत्र हमारे चरित्र नायकको बताया और कहा:-" तुम्हारी अध्ययन करनेकी उत्कट अभिलाषा है । उसको पूरा करनेके लिए यह बहुत ही अच्छा अवसर है। जगह जगह भटकने और जुदा जुदा पंडितोंसे थोड़ा थोड़ा पढ्नेकी अपेक्षा, एक ही स्थानमें, एक ही पंडितसे क्रमशः ग्रंथोंका अध्ययन करना विशेष उत्तम है। इससे विशेष ज्ञानकी प्राप्ति होगी। जिस भाग्यवानने मुनिराजोंके लिए यह प्रयत्न किया है, उसका प्रयत्न भी सफल होगा।" ___ आपके मनमें पढ़नेकी उत्कट अभिलाषा थी; मगर इस समय पढ़नेका कोई साधन नहीं था इसलिए आपके हृदय पर इस प्रेरणाने असर किया । आप हाथ जोड़कर बोले:"आपका फर्माना ठीक है, परन्तु मैं अकेला कैसे वहाँ तक जा सकता हूँ। फिर महाराज साहबका हुक्म भी चाहिए । उनकी आज्ञाके बिना तो मैं एक कदम भी नहीं उठा सकता हूँ।"
श्रीवीरविजयजी महाराजने फर्मायाः-" आचार्यश्रीकी आज्ञाके लिए तुम कुछ चिन्ता न करो । यदि तुम्हारी जानकी इच्छा होगी तो आज्ञा मैं मँगवा दूंगा । आचार्यश्रीकी तुम पर पूर्ण कृपा है। वे चाहते हैं कि, तुम पढ़कर तैयार हो जाओ ताके उनके बाद पंजाबकी रक्षा कर सको।
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