SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श जीवन। साथीके लिए अपने साथ जो साधु हैं उनसे पूछ लिया जाय । यदि कोई तैयार हो जायँ तो ठीक है, अन्यथा तुम दोनों गुरुचेले तो हो ही । वहाँ पहुँचने पर अनेक साथी मिल जायँगे । तुम अपने विचार दृढ कर लो, मैं आचार्यश्रीको पत्र लिख देता हूँ।" ___ आपने कहा:-" आप आचार्यश्रीकी आज्ञा मँगवा लें । मैं जानेको तैयार हूँ। यदि और कोई साथी न मिलेगा तो हम दोनों गुरु चेले ही जायँगे । " - श्रीवीरविजयजी महाराजने आचार्यश्रीके पास आज्ञा लेनेक लिए पत्र भेजा । उस पर आपके हस्ताक्षर भी करा लिये । साथके साधुओंसे जब पूछा गया तो उनमेंसे मुान श्रीराज विजयजी महाराज और मुनि श्रीमोतीविजयजी महाराज आपके साथ जानेको तैयार हो गये। आचार्यश्रीकी भी आज्ञा आई कि,-" यदि जानेकी इच्छा हो तो खुशीके साथ जाओ मगर पाँच सालसे ज्यादा उधर न रहना । पाँच सालके अंदर जब इच्छा हो तभी यहाँ लौट आना । इस बातका खयाल रखना कि, कहीं दोनों तरफसे न जाओ।" न खुदा ही मिला न विसाले सनम । .. न इधरके रहे न उधरके रहे। आपने जानेकी तैयारी कर ली । अमृतसरके श्रीसंघने आपको ठहरनेकी विनती की और कहा:-" हम श्रीसंघके दो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy