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________________ आदर्श जीवन । पंडित उत्तमचंद्रजी वहाँ एक बहुत अच्छे पंडित हैं ।" श्रीवीरविजयजी महाराजने सहर्ष इस बातको स्वीकार कर लिया । श्रीवीरविजयजी महाराज हमारे चरित्रनायक आदिको साथ लेकर पट्टी गये । मगर वहाँ मालूम हुआ कि, पंडित उत्तमचंदजी किसी कार्य के लिए बाहर गये हुए हैं और उनके शीघ्र ही लौट आनेकी कोई आशा भी नहीं है । अतः पट्टीमें विशेष न ठहरकर आप श्रीवीरविजयजी महाराजके साथ अमृतसर पधारे । यहाँ पंडित कर्मचंदजीके पास आपने अवशिष्ट चंद्रप्रभाका पाठ शुरू किया श्रीदानविजयजी महाराजने भी चंद्रिकाका उत्तरार्ध अध्ययन करना प्रारंभ किया। पं० कर्मचंद्रजी अच्छे व्युत्पन्न और बुद्धिवान् थे और पदार्थको अच्छी तरह समझाते थे । वे स्वयं भी विशेष अध्ययन करनेके तीव्र अभिलाषी थे इसलिए थोड़े ही दिनों बाद वे बनारस चले गये । अमृतसरके श्रावकोंने तलाश करके पंडित विहारीलालजीका योग मिला दिया । उनके पास आपने न्यायमुक्तावलीका अध्ययन प्रारंभ किया। थोड़े दिनों बाद वे किसी आवश्यक कार्यसे अपने घर चले गये । ८३ उन्हीं दिनोंमें श्रीवीरविजयजी महाराजके पास भावनगरनिवासी सेठ कुँवरजी आनंदजीका एक पत्र आया । उसमें लिखा था कि, " मकसूदाबाद निवासी बाबू बुधसिंहजी दुधेरियाने पालीताने में एक संस्कृतपाठशाला खोली है । जो मुनिराज अध्ययन करना चाहते हैं उनके लिए यह पाठशाला बहुत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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