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________________ आदर्श जीवन। VARANA.ORNVAYAMVA--- - तीविजयजी (४) वाड़ीलालजीका श्रीलब्धिविजयजी (५) मगनलालजकिा श्रीमानविजयजी (६) जयचंदजीका श्रीजसविजयजी (७) अनंतरामजीका श्रीरामविजयजी । प्रारंभके तीन १०८ श्रीहर्षविजयजी महाराजके, चौथे १०८ श्रीही रविजयजी महाराजके पाँचवें १०८ श्रीप्रेमविजयजी महाराजके, छठे, उस समय मुनि और इस समय आचार्य श्री १०८ श्रीविजयकमलसूरिजी महाराजके और सातवें १०८ श्रीसुमति विजयजी उर्फ स्वामीजी महाराजके शिष्य हुए। .. पालनपुरसे विहार करके आचार्य महाराज पाली (मारवाड़) पंधारे। आप भी आचार्यश्रीके साथ ही आबूजी पंचतीर्थी आदि तीर्थोकी यात्रा करते हुए पाली पहुँचे । पंच तीर्थीकी यात्रा करने जाते हुए मार्गमें बाली आता है। वहाँ रातको आपने जुबानी ही उपदेश दिया और दूसरे दिन नाडलाईमें व्याख्यान बाँचा । श्रावकोंने आपके व्याख्यानोंको बहुत पसंद किया। ये ही दोनों स्थान हमारे चरित्रनायकके प्रथमउपदेश स्थान हैं। पालीमें आचार्यश्री ने आपको एवं ज्ञानविजयजी, लब्धिविजयजी, मानविजयजी, शुभविजयजी, मोतीविजयजी और जशविजयजी ऐसे सात साधुओंको छेदोपस्थापनीय चारित्र दिया अर्थात् बड़ी दीक्षा दी। यह दीक्षा सं० १९४६ के वैशाख सुदी १० या ११ को श्रीनवलखा पार्श्वनाथजीके मंदिरमें हुई थी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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