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________________ आदर्श जीवन। wwwwwwwwwwwwwww प्रमोदविजयजी महाराज और मुनि महाराज श्री १०८ श्री अमरविजयजी महाराजके पाससे चंद्रिकाके उत्तरार्धका दसगणों पर्यंत अध्ययन कर लिया। महेसानासे विहार करके श्रीसूरिजी महाराज वडनगर, विसनगर होते हुए श्रीतारंगाजी तीर्थकी यात्रा करनेके लिए खेरालु पहुँचे । यहाँ गोधानिवासी श्रीयुत मगनलाल भाई, दीक्षालेनेके इरादेसे आये । आचार्यश्रीने अगले चार विद्यार्थियोंके साथ इन्हें भी पढ़ानेके लिए आपको सौंप दिया। आप पाँचों विद्यार्थियोंको सस्नेह विद्या पढ़ाते रहे । आचार्यश्री तारंगाजीकी यात्रा करके विचरण करते और भक्तजनोंको उपदेशामृतका पान कराते हुए पालनपुर पहुंचे। दीक्षालेनेके इच्छुक भव्य जीवोंको साथ देखकर पालनपुरके श्रीसंघने आचार्यश्रीसे प्रार्थना की कि, इन भाग्यशालियोंको आप यहीं पर दीक्षा दें। हम लोग दीक्षामहोत्सव कर आनंद मनायँगे और अपने आपको धन्य मानेंगे । आचार्यश्रीने संघकी प्रार्थना स्वीकार कर ली। दीक्षामहोत्सव हो रहा था। उसी समय दो सज्जन दीक्षा लेनेकी अभिलाषासे और आगये। एक थे लीमडीनिवासी श्रीयुत जयचंद भाई और दूसरे थे श्रीयुत अनंतराम । दूसरे स्थानकवासी साधुपनेका त्याग करके आये थे। यहाँ आचार्यश्रीने सात सज्जनोंको सात भयोंकी मिटानेवाली दीक्षा दी। उनके नाम-(१)दीपचंदजीका श्रीचंद्रविजयजी (२) बर्द्धमानजीका श्रीशुभविजयजी (३) मगनलालजीका श्रीमो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org |
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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