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________________ ( २१८ ) निकाले कि जो कोई जैन विद्यार्थी मेट्रिक पास करके आगे अभ्यास करना चाहे उसे स्कॉलरशिप दी जाय । उसी समय वह कम इन्होंने चार ट्रस्टियोंके आधीन कर दी थी । अनेक विद्यार्थी इस रकम में से स्कॉलरशिप पाकर ग्रेज्युएट हुए और सेठजीका गुण गानकर रहे हैं । जब ये " राधनपुर जैन मंडल' के सभापति थे तब एक बार मंडलकी सभामें हुनर-उद्योगके विषयकी चर्चा हुई । इन्होंने बड़ोदेके कलाभुवनमें तीन विद्यार्थियोंको तीन वर्षतक अध्ययन करनेके लिए भेजने को कहा और उनका जो खर्चा हो वह इन्होंने देना स्वीकारा | तीन विद्यार्थी गये और उनके लिए १०८०) रु. का खर्चा हुआ । 1 राधनपुरमें इन्होंने एक जैन शाला खोली । उसका सारा खर्चा ये खुद ही देते थे और अब भी उनके पुत्र दे रहे हैं। सैकड़ों बालक बालिकाएँ इससे लाभ उठाते हैं और धर्म ज्ञान प्राप्तकर धर्म में रत होते हैं । एक लाख रुपये, इन्होंने राधनपुरमें एक औषधालय स्थापित कर दान दिये । उसमें एक वैद्य और एक डॉक्टर रहता है। हजारों ही नहीं लाखों स्त्री पुरुषोंने इससे लाभ उठाया है और उठा रहे हैं। दस हजार रुपये लगाकर औषधालयके लिए इन्होंने एक उत्तम मकान भी बँधवा दिया था | औषधालयमें भेद भाव चिकित्सा होती है । अपने अन्त समयमें पचास औषधालयको और भी दान दे गये हैं । बगैर मनुष्य मात्रकी हजार रुपये इस राधनपुरमें कई बरस पहले इन्होंने एक सदा व्रत खोला और उसमें बीस हजार रुपये दिये । उनके व्याजसे सदाव्रत चल रहा है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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