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________________ (२१९) इन्होंने बीस हजार रुपये अपने साधनहीन श्रावक भाइयोंको मदद देनेके लिए निकाले हैं। इनके व्याजसे प्रतिवर्ष अनेक श्रावकोंको सहायता दी जाती है। करीब १५००) रु. सालानाका गुप्त दान देते थे। उसमें किसी तरहका भेद भाव नहीं रखते थे। श्री शान्तिनाथजीके मंदिरमें संघ जिमानेके लिए इन्होंने सोलह हजार रुपये दिये थे। ___ महावीर जैन विद्यालय बंबई के ये पेटरन थे। करीब इक्कीस हजार की रकम इन्होंने महावीर जैन विद्यालयके भेट की है। ___ आचार्य श्रीविजयवल्लभ सरिजीके ये अनन्य भक्त थे । होते क्यों नहीं ? बचपनहींमें दोनों कुछ समय साथ रहे । राधनपुरमें स्वर्गीय हर्षविजयजी महाराजके चरणोमें बैठकर दोनोंने एक साथ अध्ययन किया। इन्हींके सामने वल्लभविजयजी महारानकी दीक्षा हुई । वल्लभ विजयजी महाराजको ये अत्यधिक पूज्य मानते थे । ऐसा कोई काम नहीं जिसके लिए महाराज साहिबने लिखा हो या कहा हो और इन्होंने उसे नहीं किया हो । सं० १९८१ में लाहौरमें जब आचार्य पदवी अर्पण की गई उस समय ये वहाँ मौजूद थे और इस खुशीमें इन्होंने वहाँ साधर्मी वात्सल्य किया था। ___ राधनपुरके नवाब साहिबसे इनका अच्छा मेल था । श्रीशंखेश्वरजीमें एक धर्मशाला की आवश्यकता थी । वहाँ इन्होंने नवाब साहिबसे कहकर कुछ जमीन ली और उसमें एक उत्तम धर्मशाला तैयार करवाई। इसमें यद्यपि अहमदाबाद और बंबईके कुछ सेठोंकी भी सहायता ली गई थी; परन्तु विशेष रुपये तो इन्होंने ही लगाये थे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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