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________________ ( २१७ ) स. १९६६ में इन्होंने राधनपुर में एक महान उद्यापन-उजमणा किया। हजारों लोग उस अवसर पर वहाँ आये । ३६०००) हजार रुपये उसमें खर्च हुए । उस समयसे उनके शहरके बाहर बनवाये हुए बँगलेमें कार्तिकी पार्णमा और चैत्री पर्णिमा पर सिद्धाचलजीका पट बाँधाजा ता है, लोग उसके भाव पूर्वक दर्शन कर साक्षात् सिद्धाचलजीकी यात्रा करने जितना संतोष मानते हैं और सेठनीकी प्रशंसा करते हैं। स. १९६६ में पूज्यपाद आचार्य महाराज श्रीविजयवल्लभ सरिजी-जो उस समय सामान्य मुनि थे-के पास पालन पुरमें आकर बड़ी ही नम्रता पूर्वक विनती की कि मैं संघ निकालना चाहता हूँ। कृपा करके आप संघमें पधारिए । आचार्य श्रीके स्वीकार करनेपर इन्होंने छरी पालते हुए सिद्धाचलजीका संघ निकाला । इसका सविस्तर वर्णन पूर्वार्द्धमें किया जा चुका है । पाठक वहाँसे देख लें। इस मौकेपर मार्गमें अनेक स्थानोंके श्री संघोंने इन्हें मानपत्र दिये थे : उस समय करीब ३५०००) हजार रुपये खर्च हुए थे। पालीतानेमें सं० १९६७ में चौमासा किया और सं. १९६८ में “नवाणुयात्रा' की आर उस समय दान पुण्य आदिमें इन्होंने १५०००) रुपये खर्च किये । सं० १९७४ में ये जब सम्मेतशिखरजीकी यात्रा करने गये तब इन्होंने १७०००) रु. जुदा जुदा धर्मालयोंमें दान दिये। ये जैसे थे धर्मप्रेमी वैसे ही विद्याप्रेमी भी थे । आचार्य महाराज श्री विजयवल्लभ सूरिजीके उपदेशसे इन्होंने बीस हजार रुपये इस हेतुसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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