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________________ (१४७) किरणोंको घरमें आने दो । ज्ञान प्रकाशके आते ही लक्ष्मी प्रसन्न हो आपका घर कभी न छोड़ेगी। पाठशाला-विद्यालय-स्कूल-कॉलेजसे फायदा । सज्जनो ! थोड़ी समझवाले महाशयोंका यह कहना होता है कि जिनको पढ़ना पढ़ाना होगा आप ही अपना उद्यम कर लेंगे । समाजके पैसोंसे पाठशाला-विद्यालय-स्कूल-कॉलेज बनवानेकी क्या जरूरत है ? अंग्रेजी पढ़ जायँगे तो उल्टे श्रद्धाहीन नास्तिक हो जायेंगे। बेशक मुझे कहना होगा, कि किसी अंशमें उनका कहना या मानना ठीक है; परंतु उसमें भूल किसकी है? इस बातका खयाल उन महाशयोंको नहीं आया है । यदि अंग्रेजी विद्यामें ऐसी शक्ति है तो मेरे सामने बैठे हुए श्रीश्वेतांबर जैन कॉन्फरन्सके पिता गुलाबचंदजी ढढ्ढा एम. ए. और श्रीमहावीर जैन विद्यालयके ऑनरेरी सेक्रेटरी मोतचिंद कापड़िया सॉलिसिटरको उसका असर क्यों न हुआ ? ___ आपको मानना ही होगा कि, इनको बचपनमें धर्मका शिक्षण मिला है। बस यही उद्देश पाठशाला आदि जारी करनेका है । लोग अपने मतलबके लिए सांसारिक शिक्षण तो देते और लेते हैं; परंतु धार्मिक शिक्षणका वहाँ कोई प्रबंध नहीं। ऐसी हालतमें अंग्रेजी पढे लिखोंमें यदि श्रद्धाका ह्रास या अभाव हो जाय तो कोई आश्चर्य नहीं, इसी वास्ते उनकी श्रद्धा बनी रहे और वे अपनी समाजकी उन्नतिको चाहें इसके लिए ही धार्मिक शिक्षणके प्रबंधकी अत्यावश्यकता है। राज्यभाषा न सीखे और अकेला ही धार्मिक शिक्षण ले यह तो होना ही असाध्य है । एक साधु भी यदि राज्य भाषा जानता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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