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________________ (१४८) हो तो बहुत काम कर सकता है । तो गृहस्थ जिसे व्यापारादिसे अपना निर्वाह करना है उसका तो कहना ही क्या? इस लिए धार्मिक शिक्षण वे खुशीसे लें। और साथ साथ व्यावहारिक शिक्षण भी उन्हें देना जरूरी है। जिसके लालचसे वे धार्मिक अभ्यास करें। आप सबको इस बातका पूरा अनुभव है। जिस रोज उपाश्रयमें पतासे या श्रीफलकी प्रभावना होती हैं कहीं उपाश्रयमें जगह भी नहीं मिलती । आपके सामने ये श्रीमहावीर जैन विद्यालयके विद्यार्थी बैठे हैं । विद्यालयमें दाखिल हुए उस समय जैन किस चिडियाका नाम है इतना भी इनको ज्ञात न होगा। परंतु इस वक्त धार्मिक अभ्याससे और प्रखर पंडित व्रजलालजीके सहवाससे इनमें एक नया ही जीवन आया दिखाई देता है कि, जिससे यह जैन समाजकी जाहोजलाली-उन्नति देखनेको उत्सुक हो रहे हैं। यह सब प्रताप अपने स्वतंत्र प्रबंधका है । इस लिए महाशयो ! यदि अपने समाजकी उन्नति चाहते हो तो अपनी स्वतंत्र पाठशाला आदि अवश्य होने चाहिए, जिसमें अपनी इच्छानुसार धार्मिक शिक्षाका प्रबंध हो सके । महानुभावो ! समय अधिक हो गया। मैं बोलते थक गया। आप सुनते नहीं थके होंगे तो बैठे तो थक ही गये होंगे । आखिरमें गवैया प्राणसुखका गाया हुआ पद आपको याद दिलाता हूँ। मेरे बोलनेके प्रवाहमें कहीं त्रुटि रह गई हो, कहीं असंबद्ध या अनुचित बोला गया हो तो उसकी बाबत मिच्छामि दुक्कडं देता हुआ मैं अपने वक्तव्यको यहीं समाप्त करता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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