SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 723
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१४६) इससे भी समझा जाता है कि एका बड़ी चीज़ है । आप सब इक्के हो कर आपसमें मिलजुल जो कुछ करना चाहोगे बड़ी सुगमताके साथ कर सकोगे। संप तो क्या अमीर क्या गरीब सबका चाहिए। परंतु उदारता तो केवल अमीरोंकी ही होनी चाहिए। दाता और कृपण ये दो नाम धनाढ्यके लिए ही बख्शिश हैं। गरीबोंका इन पर कोई दावा नहीं । दुनिया में गरीबको न कोई दाता कहता है न कंजूस ही । धनवान अमीर होकर दान करे तो दाता कहाता है । यदि जमा ही करता रहे दान करे ही नहीं तो वह कंजस कहाता है। मतलब; ये दोनों पदवियाँ अमीरोंके लिए रजिस्टर्ड हो चुकी हैं। अब दोनों से आपको जो रुचे सो स्वीकार करें । आपका-अमीर वर्गका अख्तियार है। परंतु यह याद रखना कि, दाताका नाम प्रातःकालमें लोग खुशीसे लेते हैं और कंजसका नाम लेना तो दूर रहा कभी भूलसे लिया जाय या सुनाई दे तो उसके नाम पर सब यूँकते हैं और कहते हैं हाय हाय किस पापी कंजूसका नाम लिया । बस अमीर बने हो तो अपने नाम पर थुकाओ मत । उदार बनो । लक्ष्मीको भेजकर सरस्वतीको आमंत्रण दो । सरस्वतीके बिना घरमें अज्ञानांधकार है । अंधकारमें रहना लक्ष्मी पसंद नहीं करती । वह सदा शाप दिया करती है, कि हाय मैं किस अँधेरे कैदखानेमें आई ! वह मौका ही देखा करती है कि, मैं किधरसे भागू ? याद रखना ऐसी हालतमें यदि वह रूठकर भाग गई तो फिर इस भवमें तो क्या कई जन्मोंमें भी तुम्हारे पास नहीं फटकेगी । इस लिए यदि लक्ष्मीको प्रसन्न रखना चाहते हो तो ज्ञानरूपी सर्यकी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy