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लगानेके लिए गुजराती भाइयोंकी तरफ कड़ी नजर से देखा जाता है । नहीं, नहीं, मेरा जन्म बड़ोदा - गुजरातमें है और मेरी दीक्षा आपके सामने बैठे हुए नवमी कॉन्फरन्सके माजी प्रमुख सेठ मोतीलाल मूलजीके शहर राधनपुर में हुई है । मेरी दोनों ही अवस्थाकी मातृभूमि गुजरात है । मुझे गुजरातकी भूमिका मान है । परंतु मैं जिस आशयसे कह रहा हूँ उस पर लक्ष्य दिया जायगा तो मेरा कहना आपको अवश्य न्याय संपन्न दिखलाई देगा । जितने पुराने बड़े बड़े भव्य राणकपुरजी सरीखे मंदिर मरुभूमिमें दिखाई देते हैं, गुजरात में नहीं दिखाई देंगे । गुजरातमें जाकर इन अपूर्व मंदिरोंके लिए गुजराती भाइयोंने कितना द्रव्य भेजा ? हाँ गुजरातमें प्रकट होते नये नये तीर्थोंके लिए मारवाड़ी भाइयोंसे द्रव्य लिया तो जरूर होगा । इस हालतमें बतलाइए गुजरातकी आशा पर बैठ रहना ठीक है ? कदापि नहीं । रहा पूर्व और पंजाब । सो उधर तो इतनी वस्ती ही नहीं । वे अपना काम आप ही निभा लेवें तो गनीमत है । बस तेलीके बैलकी :: तरह इधर उधर घूमघाम कर फिर मारवाड़ी भाइयों पर ही दृष्टि आ ठहरती है। इसमें शक नहीं कि मारवाड़ी व्यापारी हैं, धनाढ्य हैं, श्रद्धालु हैं, परंतु विद्याके अभावसे विवेकका वियोग हो जाने से हठीले ज्यादा नजर आते हैं । जिस बातको पकड़ लेते हैं छोड़ते... नहीं । यद्यपि यह बड़ा भारी अवगुण है, परन्तु मेरे लिए, नहीं, नहीं आप सबके लिए, वीर प्रभुके शासनके लिए वह गुणरूप होता नजर आता है । आप समझ लेंवे, इस वक्त जिस कामके लिए मारवाड़ी भाइयोंने हाथ लंबाया है, हठ पकड़ लिया तो बस जयजयकार समाजका उद्धार हुआ ही पड़ा है । इसमें शक नहीं ।
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