SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 719
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१४२) महाजन डाकू मत बनो। आप सुनकर खुश होंगे मारवाड़ी भाइयोंने श्रीमानंद जैनविद्यालय गोड़वाड़ स्थापन करनेका निश्चय कर लिया है। जिसके लिये चंदा फंड जारी है। करीब दो ढाई लाखकी रकम लिखि गई है। मैं उम्मीद करता हूँ इसी तरह इनका उत्साह जारी रहा तो यह रकम दश लाख तक पहुँच सकती है और जैन कॉलेजका उद्देश बहुत ही जल्दी पूरा हो सकता है। देखना चाहिए अब मारवाड़ी भाई मुझे कितना सच्चा बनाते हैं। हुंडी तो लिखी गई है अब सिकरनेकी देरी है। यदि सिकर गई तो वाह ! वाह ! वरना समझा जावेगा बाहिरसे हमें मीणे-डाकुओंने लूटा और अंदरसे महाजनडाकूओंने लूटा। ___महाशयो ! समय अधिक होता जाता है। मेरा कथन कहीं कहीं आपको चुभता भी होगा; परंतु आप जानते हैं, मातापिताका दिल जब दुखता है तब कटु औषध ही पुत्रको पिलाते हैं। मेरा दिल अंदरसे दुखता है तभी आपकी, समाजकी दुर्दशाको सुधारके लिए इतना कहता हूँ। यदि आप इसको हितबुद्धिसे, गुरुबुद्धिसे निःस्वार्थ हमारे भलेके लिए ही कहते हैं, इस आशयसे स्वीकारेंगे तो आपका, आपके बालबच्चोंका, आपके समाजका हित होगा, और यदि उल्टा समझेंगे तो आपका ही अहित है। परंतु मुझे तो उपकार दृष्टिसे, हितबुद्धिसे, अनुगृह बुद्धिसे, कहनेमें एकांत हित ही हित है। वीतरागकी दुकानके सच्चे मुनीम ।। महानुभावो! तीर्थंकर भगवान वीतराग देवकी दुकानके सच्चे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy