SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 717
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१४०) में भी नूतन प्रेमपाशबद्ध होकर पुरातन स्त्रीका अपमान करते हैं। परंतु राज्यभयसे, लोकापवाद भयसे या ज्ञातिबंधनके भैयसे उसका निर्वाह तो उसे अवश्य ही करना पड़ता है । अफसोस सरस्वतीका इतना भी निर्वाह नजर नहीं आता । मैं सत्य कहता हूँ ! आप लोगोंकी जो बिगड़ी हुई दशा दिखलाई या सुनाई देती है, उसे आपके किये अपमानसे कुपित हुई सती सरस्वतीके शापका ही प्रभाव समझना चाहिए । इस लिए उसको मनाओगे तब ही आपका सौभाग्य बढ़ेगा। गुजराती भाइयोंकी आशा छोड़ दो। महानुभावो! मुझे सहर्ष कहना पड़ता है कि आप सब क्या गुजराती, क्या मारवाड़ी, क्या पूर्वी क्या पंजाबी इसी मारवाड़ भूमिके पुत्र हैं। सौभाग्यवश आप सब क्या ओसवाल, क्या श्रीमाल, क्या पोरवाल अपनी मातृ भूमिमें उपस्थित हुए हैं । आप सबको मिलकर मातृभूमिका उद्धार करना होगा । जब आपकी मातृभूमिका उद्धार होगा याद रखना आपका, आपके धर्मका, प्रभु वीर भगवानके शासनका तभी उद्धार होगा । जिनमें गुजराती भाई तो इस भूमिसे बिल्कुल निर्मोही हो चुके हैं। इन्होंने अपना खानपान, पहेरवेश, बोलचाल, रीतिरिवाज, रंगढंग सब ही प्रायः बदल लिया है। इससे इनकी आशापर रहना तो मुझे ठीक नहीं मालूम देता। __ यहाँ तक जिन्होंने जवाब दे दिया कि, कभी हमारे पर मारवाड़ी भाई हक न जमा लेवें, अपना गोत तक भुला दिया। आप यूँ न समझें कि, महाराज मारवाड़में हैं इस लिए मारवाड़ियोंको अच्छा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy