SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आदर्श जीवन। __ सब वंदना कर अपने अपने घर गये। आचार्य महाराजने भी आराम किया। सवेरे ही आप प्रतिक्रमण कर आचार्य महाराजको वंदना करने गये। उनके चहरे पर प्रसन्नता थी । वे आपकी पीठपर हाथ फेरते हुए बोले:-“ले बच्चा ! तेरी मनोकामना पूरी होगई। रातको खीमचंदभाई आकर इजाजत दे गये हैं।" यह सुनकर आपको जो आनंद हुआ उसका वर्णन करनेकी शक्ति इस लोहेकी कलममें कहाँ ? __मुनि महाराज श्रीहर्षविजयजीको, आचार्य महाराजने फर्मायाः-" भाई ! तेरे चेलेकी दीक्षाका मुहूर्त दिखलाना है । किसी श्रावकको कहकर जो ज्योतिषी श्रीसंघका काम करता हो उसे बुला लेना।" व्याख्यान हुआ। फिर भोजनके बाद शुभ चौघड़ियेमें एक श्रावक ज्योतिषीको ले आया। और श्रावक भी एकत्रित हो गये । श्रीसंघके नेताओंने खीमचंदभाईको अगुआ बनाकर शिष्टाचारपूर्वक ज्योतिषीसे मुहूर्त पूछा । ज्योतिषीने बहुत देर तक देखभाल करनेके बाद वैशाख सुदी त्रयोदशीका दिन दीक्षाके लिए शुभ बताया। लग्नकुण्डली भी उसने उसी समय बना डाली। वह बोला:-" यद्यपि खीमचंदभाई दीक्षाका मुहूर्त जल्दी चाहते हैं, मगर इससे जल्दी अच्छा मुहूर्त एक भी नहीं है । इस मुहूर्तमें जो व्यक्ति दीक्षित होगा उसे संसारमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy