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________________ आदर्श जीवन | यश मिलेगा, लाखों लोग उसे पूजेंगे और वह किसी उच्च पदको प्राप्त करेगा । " ५६ आचार्यश्रीने भी कुंडली देखी और कहा :- " ज्योतिषीजीका कहना वास्तवमें सत्य है । क्यों खीमचंदभाई तुम क्या कहते हो ? " खीमचंदभाई बोले :- " आपकी समझमें जो बात ठीक जचे वही कीजिए । चार दिन बादका मुहूर्त्त हो तो कोई हर्ज नहीं मगर होना चाहिए वह बहुत बढ़िया । जब आप, ज्योतिषीजी और अमीचंदजी इसीको ठीक समझते हैं तो यही रहने दीजिए। मगर खेद है कि मैं इससे लाभ न उठा सकूँगा । करीब एक महीनेका अन्तर है और मेरे पास सरकारी ठेका है, इसलिए इतने समयतक मैं यहाँ नहीं रह सकता । समय आनेपर आप खुशीसे दीक्षा दीजिए। यदि मौका मिलेगा और सरकारसे छुट्टी पासकूँगा तो उस समय जरूर आऊँगा । मैंने कुछ अनुचित व्यवहार किया हो; मन, वचन या कायसे मैंने किसी तरहकी आपको तकलीफ दी हो; आपका मन दुखाया हो तो उसके लिए आप मुझे क्षमा करें। मैं अज्ञानी हूँ। मेरी बातोंका खयाल न करें । " I खीमचंदभाईका हृदय भर आया । उन्होंने महाराज साहबके चरण पकड़ लिए । आचार्यश्रीने उन्हें उठाया और मधुर शब्दों में कहा :- “ खीमचंदभाई ! तुमने बहुत बहादुरीका काम किया है । तुम निकट भव्य जीव हो । मैंने कइयोंको दीक्षा दी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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