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आदर्श जीवन ।
पास चलिए और बधाई दीजिए। फिर आप अपने घर चले जाइए, मैं यहाँ लौट आऊँगा । "
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मोहन पारख पासमें बैठे ऊँघ रहे थे । वे खीमचंदभाईकी न्यायसंगत बातें सुनकर प्रसन्न हुए और बोले :- " गोड़ीदास - भाई ! खीमचंदभाई ठीक कह रहे हैं। तुम इनके साथ जाओ । मैं जेसंगको साथ भेजता हूँ । तुम फिर घर चले जाना और वह इन्हें यहाँ ले आयगा । "
मोहन पारखका लड़का जेसंग लालटेन उठाकर आगे चला, और दोनों उसके पीछे । तीनों रत्नत्रयकी - ज्ञान, दर्शन और चारित्रकी - दलाली करने उपाश्रयमें पहुँचे ।
आचार्य महाराज अभी ही लेटे थे। उनके कानोंमें त्रिकाल वंदनाकी आवाज पहुँची । आचार्य महाराजने धीरेसे पूछा:“ श्रावकजी इस वक्त ? "
गोड़ीदास बोले: - “ कृपानाथ ! तकलीफ दी, माफ कीजिए । खीमचंदभाई कुछ जरूरी अर्ज करना चाहते हैं । इसलिए अभी हाजिर हुए हैं । "
आचार्य महाराज उठ बैठे। तीनों सामने बैठ गये । संकेतानुसार गोड़ीदासभाईने सारी बातें कह सुनाई । सुनकर आचार्य महाराजने खीमचंदभाईको शाबाशी दी और कहा :- " अच्छी बात है। तुम चाहते हो ऐसा ही होगा। अभी रात ज्यादा चली गई है । जाकर शान्तिसे आराम करो। सवेरे ज्योतिषीको बुलाकर तुम्हारे सामने ही मुहूर्त नक्की कर लिया जायगा । "
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