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________________ आदर्श जीवन । पास चलिए और बधाई दीजिए। फिर आप अपने घर चले जाइए, मैं यहाँ लौट आऊँगा । " ५४ मोहन पारख पासमें बैठे ऊँघ रहे थे । वे खीमचंदभाईकी न्यायसंगत बातें सुनकर प्रसन्न हुए और बोले :- " गोड़ीदास - भाई ! खीमचंदभाई ठीक कह रहे हैं। तुम इनके साथ जाओ । मैं जेसंगको साथ भेजता हूँ । तुम फिर घर चले जाना और वह इन्हें यहाँ ले आयगा । " मोहन पारखका लड़का जेसंग लालटेन उठाकर आगे चला, और दोनों उसके पीछे । तीनों रत्नत्रयकी - ज्ञान, दर्शन और चारित्रकी - दलाली करने उपाश्रयमें पहुँचे । आचार्य महाराज अभी ही लेटे थे। उनके कानोंमें त्रिकाल वंदनाकी आवाज पहुँची । आचार्य महाराजने धीरेसे पूछा:“ श्रावकजी इस वक्त ? " गोड़ीदास बोले: - “ कृपानाथ ! तकलीफ दी, माफ कीजिए । खीमचंदभाई कुछ जरूरी अर्ज करना चाहते हैं । इसलिए अभी हाजिर हुए हैं । " आचार्य महाराज उठ बैठे। तीनों सामने बैठ गये । संकेतानुसार गोड़ीदासभाईने सारी बातें कह सुनाई । सुनकर आचार्य महाराजने खीमचंदभाईको शाबाशी दी और कहा :- " अच्छी बात है। तुम चाहते हो ऐसा ही होगा। अभी रात ज्यादा चली गई है । जाकर शान्तिसे आराम करो। सवेरे ज्योतिषीको बुलाकर तुम्हारे सामने ही मुहूर्त नक्की कर लिया जायगा । " Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002671
Book TitleAdarsha Jivan Vijay Vallabhsuriji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKrushnalal Varma
PublisherGranthbhandar Mumbai
Publication Year
Total Pages828
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Biography
File Size12 MB
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